गुरुवार, 11 अगस्त 2011

यादें

बातें ख़त्म हो गयीं जिक्र जिसका हम किया करते थे .......
वो गलियां कहीं खो गयीं जिन पर हम चला करते थे......
न शाम रही न धुआं किसी एक भी चिराग मैं......
वो चले गए जिन्हें हम देखे कभी न थकते थे......
हमको क्या हक है अब किसी को कुछ कहने का ......
बातें वो और थीं ॥ हम जिनपे मिला करते थे .....
रास्ता न रहा कोई मेरी मंजिलें तक़दीर का .......
रास्ता वो सब छुट गया॥ हम जिनपे मिला करते थे .....
अब हमको मारेगी क्या दुनियां कि ये विरानियाँ ...
वो अंदाज और था.. जीने का.. जब रोज मरा करते थे..

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जीवन के रंग

जीवन के आपाधापी मैं ...
सृष्टि के अनुपम चित्र मैं..
उस महान चित्रकार कि..
तुलिका से..
ख़त्म किया जा रहा रंग....

बेस्वाद होते टमाटर
रोज चटखीले नज़र आते हैं..
बैगनी रंग..
और चटकदार होता जा रहा है..
मगर स्वाद ख़त्म हो रहा है.. बैगन से....

अधरों प़र मोहित मुस्कान लिए ...
बाला बैठी है.. चटकदार कपडे पहने..
नेल पोलिश का रंग भी .. अजीब है..
बेच रही है.. खोखली मुस्कान..
और खोता जा रहा है.. रंग.....

जीवन का रंग, ख़ुशी... गम ...
सब एक रंग मैं होता जा रहा ..
सफ़ेद रंग भी.. अब सफ़ेद न रहा...
लाल चोला भी.. अब लाल न रहा..
जीवन का रंग कहीं खोता जा रहा .....

उदासी, ख़ुशी, उल्लास ...
देखनी हो तो ..
चले आओ .. बहुत रंगीन ..
चटकदार माल बने हैं.. आपके शहर मैं..
जिसमे रंग तो हैं.. पर रंग नहीं है..