कुछ सपने केवल सपने ही रह जाते हैं
बिना पूरे हुये, बिना हकीकत हुये
और हमे वो ही अच्छे लगते हैं
अधूरे सपने, बिना अपने हुये
हम जी लेते हैं
उसी अधूरेपन को
उसी खालीपन को
सपने की चाहत में
जानते हुये भी ....
सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
यथार्थ को छोड़कर
परिस्थिति से मुह मोड़कर
हम जीते हैं सपने में
सपने हम रोज देखते हैं
कुछ ही सपनो को हम जीते हैं
बाकी सपने सपने ही रह जाते हैं
सपने तो सपने हैं ...
वो कहाँ अपने हैं ....
बिना पूरे हुये, बिना हकीकत हुये
और हमे वो ही अच्छे लगते हैं
अधूरे सपने, बिना अपने हुये
हम जी लेते हैं
उसी अधूरेपन को
उसी खालीपन को
सपने की चाहत में
जानते हुये भी ....
सपने तो सपने हैं
सपने कहाँ अपने हैं
यथार्थ को छोड़कर
परिस्थिति से मुह मोड़कर
हम जीते हैं सपने में
सपने हम रोज देखते हैं
कुछ ही सपनो को हम जीते हैं
बाकी सपने सपने ही रह जाते हैं
सपने तो सपने हैं ...
वो कहाँ अपने हैं ....