गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

राज नेता ......

सड़क पर लड़ते कुत्तों को देखकर
दिल मैं एक दर्द सो होता है
एक जाती के होने के बाद भी
लड़ते हैं ये
जैसे कोई राजनेता हों
सफ़ेद लिबास मैं लपेटे
देखे जा सकते हैं किसी
वातान्कुलित कर मैं
एक दुसरे पर गाली देते हुए
लगते हैं जैसे
सड़क के कुत्तों की तरहं
अन्तर इतना है की
सड़क के कुत्ते कटते कम
भोकते ज्यादा हैं
पर ये भोंकते भी हैं कटते भी हैं

बदल डालो इन्हें
हमको नही चाहिए सफाई
चिकनी चुपडी बातें
हमे चाहिए केवल
कुत्तों की वफादारी
देश के साथ
हमारे साथ
दे सकते हो तो दो
वरना रहने दो राज नेता कहलाने को ........

अंधेरे ......

ये अंधेरे ही तो मेरे अपने हैं
इनमें ही मेरी जिन्दगी के सपने हैं
लोग कहते हैं रात मैं होते हैं अंधेरे
जरा अपनी गहराई मैं जाकर देखो
तुम पाओगे अंधेरे
जब भी दिल बुझ जाता है तो होते हैं अंधेरे
वक्त बुरा आने पर
साथ छोड़ देते हैं उजाले
इन्हें अपना कर देखो
हमेशा तुम्हे गले से लगायेंगे अंधेरे .......

बुधवार, 29 अप्रैल 2009

रिश्तो की गांठ ......

जीवन मैं दर्द
एक नही है
कभी गम
कभी त्रास
कभी कुंठा
कभी ख़ुद को झुठलाने वाला
रोज एक नया सपना है ।

जीवन सिर्फ़ एक चादर है
जिसमे भरा है गर्द गुबार
कुछ अपना
कुछ दूसरो के समान
कुछ कम का
बाकि बेकार ।

सब कुछ समेटकर
चादर मैं
लगा दी जाती है
रिश्तों की गांठ
ढोने के लिए
ता उम्र भर ।

एक छोटा सा कमजोर धागा
वजन पड़ने पर
नहीं संभाल पता है
ख़ुद को
और बन जाता है
चादर मैं छेद ।

चादर से हर रोज गिरता है
एक एक सामान
अंत मैं
रह जाती है
सिर्फ़ एक गांठ
कपड़ा
कितना कमजोर क्यों न हो
मुश्किल है तो
सिर्फ़
एक गांठ को खोल पाना .........

रिश्तो की गांठ

जीवन मैं दर्द
एक नही है
कभी गम
कभी त्रास
कभी कुंठा
कभी ख़ुद को झुठलाने वाला
रोज एक नया सपना है ।

जीवन सिर्फ़ एक चादर है
जिसमे भरा है गर्द गुबार
कुछ अपना
कुछ दूसरो के समान
कुछ कम का
बाकि बेकार ।

सब कुछ समेटकर
चादर मैं
लगा दी जाती है
रिश्तों की गांठ
ढोने के लिए
ता उम्र भर ।

एक छोटा सा कमजोर धागा
वजन पड़ने पर
नहीं संभाल पता है
ख़ुद को
और बन जाता है
चादर मैं छेद ।

चादर से हर रोज गिरता है
एक एक सामान
अंत मैं
रह जाती है
सिर्फ़ एक गांठ
कपड़ा
कितना कमजोर क्यों न हो
मुश्किल है तो
सिर्फ़
एक गांठ को खोल पाना .........

सम्बन्ध .....

कुछ कह रही हैं
आपके सिने की धड़कने
मेरा नही तो
उनका कहा मानिये
हर शाम तरसती है
आँखों मैं लिए सपना
आमोद को कोई
तो खाए अपना
आमोद को पतझडों का
सहारा ही बहुत था
तू बता तुझे
बहारों से क्या मिला
जीवन वो भी क्या जीवन है
जिसने विष का घूंट न पीया
आमोद सम्बन्ध नही है
की जोड़कर तोड़ दिया जाए
इस तरह से रोने से गम
और घनेरा होगा
रत कसे बाद
सबेरा होगा
वक्त गर तुझसे
खफा है तो तू अफ़सोस न कर
आमोद किसी का न हुआ
तो कैसे
वो तेरा होगा ...... ....... .....

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

कोई रिश्ता नही है .....

फ़िर वही शाम घिर आयी है
आज फ़िर उसकी याद चली आयी है
दफ़न कर दो यादों के इन लम्हों को
दिल रूककर फ़िर चलने को है
वक्त रुकता नही दिखर यह
उसकी आदत भी हवाओं सी है
हमारा कोई रिश्ता नही रहा फ़िर भी
वह है हमर जिसका उसे पता भी नही है ।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

वो दिन कहाँ गए .....

शाम को जब मैं ऑफिस से घर को लौट रहा था ...... तो गाड़ी के शीशे से अनायास ही बहार की तरफ़ देख रहा था तो अचानक छोटे छोटे बच्चे जो आधे नंगे थे मिटटी मैं खेल रहे थे ........... क्या उल्लास था न कोई चिंता थी न कोई परवाह थी वहां थी तो केवल खुशी उनको देखार मैं भी अपने बचपन के दिनों मैं चला गया .... प्राईमरी स्कूल से आने के बाद अपनी तख्ती फेंककर नंगे पांव जब हम सब खेलने के लिए भागते थे हमारी मम्मी हम लोगों को खाना खिलाने के लिए हमारे पीछे पीछे भागती थी और हम सब भाग जाते थे मैदान मैं वहां हम सब चौर सिपाही और आईस पाईस खेलते थे और जब सूरज डूब जाता था तो डरते डरते घर की तरफ़ आते थे की आज तो पापा जरुर मारेंगे पर हमारी मम्मी हमको गोद मैं बैठाकर पुचकारते हुए खाना खिलाती थी।

अभी कुछ महीने पहले ही मुझे याद है बुखार हो गया था मम्मी मेरे पास ही बैठी रही थी पुरी रात । सुबह सबसे पहले उठकर मुझे सबसे पहले गरम पानी फिर चाय देती थी ...... लेकिन अब वो बात कहाँ घर में मम्मी की बस याद है सोफे के ठीक सामने मम्मी की फोटो लगी है मम्मी वहीं से सब देखती हैं मगर कुछ कहती नही हैं ...... सुबह आज भी होती हैं अन्तर इतना हैं की पहले गरम पानी के बाद चाय पिता था आज केवल चाय लेता हूँ। और भी चीजे हैं ............... अबी वो दिन कहाँ हैं ..............