दोस्तों, बहुत जल्द ही मेरा काव्य संकलन "अभिव्यक्ति" जो मैंने अपने दिवंगत माता पिता को समर्पित करा है वो प्रकाशित होने जा रहा है ... उसी संदर्भ मे एक महान विभूति डा0 विजय कुमार सक्सेना जी से मुलाक़ात हुई आदरणीय विजय जी ने मेरे इस काव्य संकलन के बारे मे अपने उद्गार दिये ..... जो निम्न है :-
उभरते हुये युवा कवि आमोद कुमार
श्रीवस्तवा के काव्य संकलन “अभिव्यक्ति” की पाण्डुलिपि को देखने पढ़ने का सुअवसर
मिला इस हेतु अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे इस अवलोकन के बहाने से यह समझने का असर मिला कि लगभग एक सदी का सफर तय कर चुकी हिन्दी
की नई कविता का कवि आज क्या सोच रहा है ? आज क्या लिख रहा है ?
अपनी अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति के
लिए इस नए कवि ने माध्यम चुना नई कविता को इस मे वह पूर्ण सफलता मिली है इस हेतु
मैं कवि को बधाई देता हूँ। आमोद ने नई कविता
को यथार्थवादी दार्शनिक पृष्ठभूमि प्रदान की है। यूं तो हर सुकवि शुरुवात तो
स्वांतः सुखाय से ही करता है पर वह आखिर है तो मनुष्य ही उसकी रचना पूर्ण होते होते पूरी तरह
परानतः सुखाय हो ही जाती है। उदाहरणर्थ महाकवि तुलसी कृत रामचरित मानस। कवि
आमोद अपने माता-पिता की स्मृति में प्रारम्भ हुई अपनी काव्य यात्रा को अनायास व अप्रयास परानतः सुखाय बना देते हैं उनके माता-पिता
की स्मृति पाठक को अपने माता-पिता की स्मृति सी लगती है यह कवि की दूसरी सफलता है।
इस युवा कवि में उफान है, कुछ करने की बेचैनी है इस
बेचैनी को वह तरह तरह से अभिव्यक्त करना
चाहता है, उसे सफलता भी मिलती है
पर कहीं कहीं यथार्थ की आधारशिला पर वह
इतिवृत्ता दोष(Matter of fact) का शिकार हो जाती है।
कवि अपने दर्शन को प्रतिपादित
करते हुये दार्शनिक ढोंग का भी पर्दाफाश करता प्रतीत होता है। ऐसा करते हुए वह गीता के कृष्ण के कर्मयोग का ही यथार्थ के
धरातल पर मृत्यु के भय से निर्भय हो कर कर्म करने का संदेश देता है, एक और सफलता है कवि की कबीर की भांति उस ने ईश्वर को माता, पिता, प्रेयसी, प्रेमी, भाई के विविध रूपों का सफल चित्रण भावपूर्ण कविता
से किया है।
यादें से प्रारम्भ करते हुये फुदकती
हुई गोरेय्या तक कुल 94 कविताओं में रोचक, सार्थक, भावपूर्ण चित्रण हुआ है
जो पाठक को आदि से अंत तक जोड़े रखता है यह
भी कवि की सफलता है।
इस वृहत और नवीन साहित्यिक स्थापनाओं वाले काव्य संकलन की उचित समीक्षा एवं मूल्यांकन के लिए समय और
सुअवसर चाहिए। समयाभाव कवि के पास तो है ही
और समयाभाव मी पास भी है। मुझे यह
पाण्डुलिपि मात्र एक दिन को ही मिल पाई है और मैं इन दिनों रोहिलखंड के अज्ञात इतिहास
पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक की रचना करने में व्यस्त हूँ। अतः में यह चाहूँगा
कि पुस्तक प्रकाशन उपरांत यह अवसर मुझे लेखक और प्रकाशक यथा शीघ्र दे सकें तो मैं
उपकृत होऊंगा।
हाँ एक और बात कहना चाहूँगा कि इन
94 कविताओं में कहीं भी सामाजिक/राजनैतिक दशाओं
का कोई चित्रण नहीं दिखा, मुझे यह विश्वाश है
कि इस काव्य संकलन का हिन्दी साहित्य जगत में
नई धारा कवि को स्वतः ही इस पर
आगे कि काव्य यात्रा में विचार करना चाहिए
व में यह समझता हूँ कि यह कृति नई कविता को एक अभिनव रूप देने में सक्षम होगी।
शुभ कामनाओं सहित।
डाo विजय कुमार सक्सेना
एम. ए., साहित्य रत्न