स्कूल का चौथा पिरीअड चल रहा था हमारे क्लास रूम
में धुप बड़े आराम से पैर फैला रही थी और हाँ उस समय हमारे पास कोई घडी नहीं होती
थी तो हम लोगों ने धुप के निशान को अपनी घडी बनाए हुये थे, जब धुप यहाँ तक आ जाएगी
तो चौथा पिरिअड ख़त्म हो जाएगा और अगर यहाँ आ जायेगी तो इंटरवल शुरू हो जायेगा और
अगर धुप पिछली दिवार को छु जायेगी तो हुर्रे ...... छुट्टी हो जाएगी !
तो हाँ हमें मालूम हो गया कि बस कुछ मिनटों में टन
टन टन टन टन टन टन घंटी बजेगी और हम लोगों की आधी छुट्टी हो जायेगी, हम लोग आधी
छुटटी का इन्तजार करने लगे ! तभी कानों में टन टन टन टन टन टन टन घंटी की आवाज
सुनायी दी और हम झूम उठे हमारे सभी साथी कैंटीन में जाने के लिए प्लानिंग करने लगे
कि आज कौन पार्टी देगा और में ये सुनकर किनारे खसकने लगा और मैं स्कुल के उस कौने
में पहुँचना चाहता था जहाँ कोई भी न आ सके .... दोस्तों ने मुझसे कहा कि चलो हमारे
साथ चलो मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं आऊंगा मेरे पास पैसा नहीं है और मैं कब तक तुम लोगों के द्वारा दिए
गए सामान को खाऊंगा .... दोस्तों ने तंज मारा कि कम से कम १० रुपये तो जेब खर्च के
लाया करो .....
मैं निरुत्तर चुप चाप वहां से बहुत जल्दी हटने की
कोशिश करने लगा मैं उनको कोई जवाब नहीं देना चाहता था कि मैं जेब खर्च क्यूँ नहीं
ला सकता ? मेरे
दो भाई और एक बहन थी पापा दिन भर मजदूरी करने के बाद जो पैसा लाते हम सभी उसी में
जो हो सकता था खाते थे अम्मा आस पड़ोस के घर में बर्तन मांजती थी तब जाकर कहीं हम
लोगों का पेट किसी तरह से भर पाता था ! कई दिन तो हम केवल रोटी और सरसों का तेल चुपड़
कर नमक लगाकर खाते थे !
हमने गरीबी देखी है जी है और गरीबी से ही उठ कर
आये हैं और हमें 10 रुपये के भी अंदाजा है कि वो कितना मूल्यवान होता है !