जीवन की आपाधापी मैं ...
सृष्टि के अनुपम चित्र मैं...
उस महान चित्रकार की..
तुलिका से...
ख़त्म होता जा रहा रंग....
बेस्वाद होते टमाटर..
रोज चटखीले लाल नज़र आते हैं..
बैगनी रंग ...
और चटकदार होता जा रहा...
मगर स्वाद ख़त्म हो रहा है बैंगन से...
अधरों पर मोहित मुस्कान लिए..
बाला बैठी है चटकदार कपडे पहने..
नील पोलिश का रंग भी अजीब है..
बेच रही है खोखली मुस्कान...
और सोता जा रहा रंग...
जीवन का गम, ख़ुशी...
सब एक रंग मैं होता जा रहा है.
सफ़ेद रंग भी अब सफ़ेद न रहा..
लाल चोला अब लाल न रहा..
और जीवन का वास्तविक रंग खोता जा रहा..
उदासी, ख़ुशी, उल्लास..
देखनी है तो....
चले आओ, बहुत रंगीन..
चटकदार माल बने हैं..
जिनमे रंग तो हैं.. पर रंग नहीं है...