दिन की थकान के बाद
जब अँधियारा
रौशनी से जितने लगता है
तो सूरज चुप चाप
कहीं छुप जाता है
कल की तैयारी में कि
फिर रौशनी होगी
फिर जीवन में उमंगें होंगी
में भी दिन भर की
अंतहीन परेशानियों के बीच
अपने बिस्तर में लेटा
सलवटों को गिनता
दिन की उहापहो के बीच
निदियाँ को न्योता देता
लेटा हूँ
निदियाँ आँखों से छिटक कर
दूर कुर्सी पर बैठी
बड़ी अजीब निगाहों से देखती
मुझ पर हंसती
कहती है...
दिन भर की कर्कशता, विवशता
द्व्न्दता, लालसा
में डूबी इन आँखों में
में नहीं आ सकती
मुझे चाहिए सकून, शांति
निश्चलता और प्रेम ...
में अपने आप को धिक्कारता, कचोटता
वही पर लेटा लेटा
धीरे धीरे शांत हो जाता हूँ
और न जाने कब निदियाँ धीरे से
मेरी आँखों में समां जाती है
एक और दिन का दरवाजा बंद हो जाता है...
कल के लिए.... कल के लिए ...
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