गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बेबसी

देखती रहती है यूँ ही हर रोज़ ..

आसमां की तरफ बेमतलब ज़मीं...

हमारा इतिहास बन जाएगी....

दब जायेंगे सब यहीं  फिर भी चुप रहेगी ज़मीं... 

मतलबी इन्सान ने ये क्या किया..

पेट के लिए बेच डाली ये साडी ज़मीं..

कंक्रीटों के इस जंगल में.....

शहर में नहीं बच पाई पांव रखने को ज़मीं...

हे भगवन तुझे मालूम होगा ...

कितनी किसको चाहिए ये ज़मीं...

अपने दिल का बोझे न संभल सकी...

तो असमान को किस तरह संभाले ये ज़मीं...


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