गुरुवार, 14 जुलाई 2011

एक शाम




फिर वही शाम घिर आयी है ..






आज फिर उसकी याद चली आयी है..




दफ़न कर दो यादों के इन लम्हों को ...






दिल रूककर फिर चलने को है..






वक्त रुकता नहीं देखकर यह ..





उसकी आदत भी हवाओ सी है...





हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी ..



वह है हमारा जिसका उसे पता भी नहीं है ..