शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

सपने

मेरा दिल सपने देखता है
और मैं उसे तोड़ देता हूँ
दिल कहता है मुझे प्यार करने वाले बहुत
मैं कहता हूँ कोइ भी नहीं
दिल कहता है ये दुनिया बहुत अच्छी
मैं कहता हूँ बिलकुल नहीं
दिल कहता है भगवन अच्छे
मैं कहता पत्थर ही हैं
ये प्यारी दुनिया, इंसान, भगवन कोई नहीं
जिसके सहारे मेरा दिल धडकता
मैं भी जीता
मेरा दिल रोता है, साथ मैं मैं भी रोता हूँ
कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं ..........

khamoshi

तुमने प्यार से पुकारा
और हम मदहोश हुए
आंखे मदहोश हुईं
और लब खामोश हुए
आँखों ने किये इशारे बहुत
और लब ने की बातें बहुत
खामोश रहकर सब क्या क्या कह गए
और तुममें खोते गए दूर तक हम ..............

बुधवार, 17 नवंबर 2010

स्मरण

जीवन मैं कई चीजे जब घटती हैं तो वो शाश्वत होती हैं और हम जन बुझकर उसे झुठलाने का प्रयास करते रहते हैं ! हम मृत्यु से इतना घबराते हैं कि पूछो मत , किसी की मृत्यु सुनकर या देखकर एकदम से अपना रक्त चाप निम्न कर लेते हैं यह आज से नहीं बरसो से होता चला आ रहा है! तभी तो इसे झुठलाने के लिए हम बार बार कहते हैं दोहराते हैं कि आत्मा अजर अमर है ये बहुत जोर देकर कहते हैं क्यूँ ? क्यूंकि हमें मृत्यु को झुठलाना है ! हम तसल्ली देते रहते हैं घबराओ मत ये तो अजर अमर है लेकिन अन्दर से हम जानते हैं कि यह बात हम किस चीज से दर कर कह रहे हैं !
दोहराने से कभी बात सच नहीं हो सकती हमें यह समझाना चाहिए ! आंखे बंद कर लेने से केवल अँधेरा होता है रात नहीं हो सकती ! मृत्यु नहीं है ये कह देने से मृत्यु नहीं होगी ऐसा कदापि नहीं है, मेरे समझ से मृत्यु को समझना होगा उससे साक्षात्कार करना होगा ! लेकिन अफ़सोस यह है कि हम सभी पीठ दिखाकर भागे जा रहे हैं मौत से !
आज सितेम्बर माह का अंतिम दिन है रात्रि के १.२० बज रहे हैं सभी अपनी अपनी यात्रा पर हैं(सो रहे हैं) कल यानि कि ०२ अक्टूबर को मम्मी का श्राद्ध है और ७ अक्टूबर को पापा जी का हाँ पिछले दो वर्षों से खासकर पिछले वर्ष इन्ही दिनों मैं मृत्यु को बहुत करीब से महसूस किया खैर आज भी वो लोग मेरे आस पास जरुर होंगे ऐसा मेरा विश्वास है और उनकी फोटो सामने वाली दीवाल पर लगी है मुझे देख रहे हैं मगर वो हाय राम ! हाय राम ! वो कहरने की आवाजे नहीं कर सकती न ही वो अब मुझसे पानी मांग सकती हैं और तो और वो वाकर कि ठक ठक की आवाज भी नहीं आ सकती हाँ याद आया वो वाकर मैंने अंतिम बार अपने पुराने वाले मकान के बगल मैं पड़ा देखा था मन तो था उसे हमेशा अपने साथ रखने का क्यूंकि कल तक जो हमारे सहारे का सहारा था उस सहारे को देखकर छू कर एक तसल्ली होती थी लेकिन कुछ चीजें हम चाह कर भी नहीं कर सकते यही जिन्दगी की सबसे बड़ी बात है और सच है ....................
मुझे अच्छी तरह याद है हमारे वाराणसी वाले घर के सामने से पंचकोशी रोड हुआ करती थी उसपर दो तीन दिनों मैं एक दो लाश अक्सर दिखाई देती थी हमारी मम्मी हमें तुरंत अन्दर खिंच लिया करती थी और कहती थी कि बहार मत आना भय भीत हो जाओगे, रात के अँधेरे मैं राम नाम सत्य है के आवाज ऐसे गूंजती थी कि पता नहीं क्या था वह, एक सबसे मजेदार बात यह कि मिटटी (लाश) के साथ चलने वाले जो बोलते हैं वो भी भगवन का ही नाम होता है मगर उस समय जो समां बनता है वो बहुत डरावना होता है!
मुझे याद है जब कुछ दिन पूर्व मम्मी पापा का देहावसान हुआ था इससे पूर्व भी मैंने बहुत नजदीक से मृत्यु शैया देखी है और उसपे बैठा व्यक्ति क्या सोचता होगा मैं समझ सकता हूँ ! शुक्रवार का दिन था मैं अपने ऑफिस से आया तो देखा कि मम्मी बिस्तर मैं है और यह एक हम सब के लिए अनोखी बात थी क्यूंकि मम्मी को हमने कभी बिना टाइम के बिस्तर मैं नहीं देखा था ! जब हम सोने जाते थे तब मम्मी किचेन मैं होती और जब हम सुबह उठते तो मम्मी किचेन मैं होती घुघरी (चने कि सब्जी) बनाते हुए उनके घुघरी और पराठे कि खुसबू से सुबह सुबह भूख दोगिनी हो जाया करती थी! उनका सुबह सुबह सबसे प्रिय भजन था जो हम सब को उठाने के लिए गया करती थी उठ जाग मुसाफिर भोर भाई अब रैन कहाँ जो सोवत है उनके जाने के बाद न वो घुघरी रही और न वो पराठ रहा जाने कितने बार घुघरी बनवाई मगर वो स्वाद वो खुशबु नहीं आ पाया अब तो घुघरी खाना छोड़ दिया क्यूंकि मन नहीं करता स्वाद नहीं मिलता......................
सुबह ऑफिस भी जाना है आगे का स्मरण बाद मैं लिखता हूँ
तेरा दरबार अमर रहे माँ
हम दो चार दिन रहे न रहे !!

सहारा

मैं परेशां हो जाता हूँ जब
इस तनहाई से भागकर
तुम्हारे पास आता हूँ
जब तुम्हारा साथ न पाकर
मायूस हो जाता हूँ
जब धड़कने रुकने लगती हैं
साँस थमने लगती हैं
जब तुम अपनी बाँहों का सहारा दो
देखो मेरी जिन्दगी को जरुरत है अब ......

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

त्रासदी

बांटना जारी है , हमको आपसे
अमीरों को गरीबों से
पानी को लकीरों से
रात को अंधियारे से
अगरबत्ती सी सुलगती है
यातना की रौशनी
जिसकी रौशनी मैं
दिख रही है
त्रासदी अपने अरमानों की
अपने समय को
देखता हूँ सिगरेट के धुंए मैं
इन धुओं के साथ
काले कण
जिन्दगी के रुपहले समय है
बांटता हूँ इन समय को
धुएं को खींचकर
एक काश भरकर
फिर उडेलता हूँ
गिनता हूँ , बांटता हूँ बार , बार ...........

सोमवार, 15 नवंबर 2010

अहसास

बाहर से जुड़ने मैं हम तुम भीतर बेहद टूटे हैं
ऐसे मैं भी लोग न जाने हमसे ही क्यूँ रूठे हैं
सबको खुश रखने मैं हमने जाने क्या क्या दर्द सहे
कहने को तो कह सकते थे लेकिन हम खामोश रहे
ख़ामोशी क्या समझेंगे वो जो बैटन के भूखे हैं
आंसू तो पवित्र हैं लेकिन होंठ सभी के झूठे हैं
बाहर से जुड़ने मैं ...........................
जिसको चाहा दिल से चाहा शाएद यही गुनाह हुआ
मैं तो हुआ समर्पित लेकिन लोग कहें गुमराह हुआ
हर सचाई शरमाई सी, हम सब कितने झूठे हैं
बाहर से जुड़ने मैं ..............


-----विशु

शाम

शाम कुछ अजीब होती है
स्याह होता वातावरण
पछिओं का कोलाहल
न जाने क्यूँ कुछ अजीब होता है
गहराता अँधियारा
यादों के पन्ने खोलने लगता है
न चाहते हुए भी
लगता है सब झूठ है फरेब है
मगर तभी समय अहसास कराता है
और यह अजनबीपन फिर घेर लेता है
धीरे धीरे सुबह आती है
फिर जिन्दगी चलती है
मगर शाम तो आयेगी ही
और अजनबीपन फिर होगा ...............


-- वो जो कभी नहीं भूले जा सकते उनको समर्पित विशु

कभी सोचा न था

यूँ तो तक़दीर ने देखे हैं मोड़ कई
जिन्दगी यूँ मुड़ेगी कभी सोचा न था
कई ज़माने से प्यासा हूँ मैं यहाँ
ओस से प्यास बुझेगी कभी सोचा न था
यूँ तो फिरते हैं कई लोग यहाँ
गुदरी मैं लाल मिलेगा कभी सोचा न था
किस्मत ने दी हर जगह दगा
मुकद्दर यूँ ही चमकेगी कभी सोचा न था
खून करे हैं सभी के अरमानों के हमने
खून मेरा भी होगा कभी सोचा न था .......

मुठी मैं रेत

यूँ ही
सड़क के किनारे
पुलिया पर बैठा
आते जाते लोगों को देखता
अपनी मगन मैं
मस्त बैठा, जिन्दगी के तमाम
सवालों पर खुद मुस्कराता
कभी इठलाता सोचता
तभी, अचानक
सएकिल सवार आता दिखा
लिया था कुछ सामान
पीछे था तेल का कनस्तर
चला जा रहा था अपनी मस्ती मैं
आज शाम बच्चों के साथ
खायेंगे पकोड़ी
और भी बहुत कुछ
तभी भाग्य मुरा
हवाओं ने रुख बदला
और वो गिर पड़ा
गिरते ही अरमान चूर चूर हो गए
आलू, टमाटर, प्याज
सड़क पर बिखेर गए
वो व्यक्ति उसे बड़ी
उदासी से देख रहा था
क्या बटोरे, कैसे इकट्ठा करे
शाम हो चुकी है
बच्चे इंतजार कर रहे हैं
आज वो क्या खिलायेगा
जिन्दगी यूँ ही बिखर जाएगी
ये मालूम न था
तेल का कनस्तर
लुढका हुआ था
तेल बहकर सारा फैला हुआ था
वो दोनों हाथों से उसे
उठाने का असफल प्रयास
मैं लगा था
जिन्दगी देखते देखते
यूँ ही सरक रही थी
शाम हो चुकी थी
वो पुलिया पर बैठा
ये सब देख रहा था ..................

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

एक टीस

नफरतो की हदें पार करते हुए
लोग डरते हैं क्यूँ प्यार करते हुए

वो पडोसी नहीं उसका चाचा भी था
उसने सोचा भी नहीं वार करते हुए

होश खो बैठे तूफान मैं तैराक भी
डूबे मंझदार मंझदार करते हुए

मेरी चाहत से इंकार नहीं वो मगर
होंठ जलते हैं इकरार करते हुए

बग्बोनो तुम्हे शर्म आती नहीं
अपना ही बाग़ बीमार करते हुये

kashish

दिल परेशान मत हो,
यह सोच गुजरे थे
कुछ लम्हे संग तुम्हारे
जिन्दगी लम्बी है बहुत
मिलेंगे कल अपने तुम्हारे
आंसू मत बहा,
बड़े अरमानो से रखा है
किसी के जनाजे के लिए
गम इसका नहीं है
कि कल मिले की नहीं .......
मैं कहाँ जाऊंगा पता नहीं
कदम जहाँ ले जायेगा वहां जाऊंगा
कहने को तो किस्मत है
नहीं मिले तो बदकिस्मत है
अंत मैं इतना तो करना रहम
मौत आने से पहले
दिखा देना अपना karam

हैप्पी deepawali

आप सभी को दीपो के इस पर्व पर ढेरों शुभकामनाये माँ महालक्ष्मी आप सभी को धन धान्य से परिपूरित करे आप सभी आने वाले जीवन मैं हँसते रहे चाहे आमोद न रहे !

दीपावली शुभ हो!

हैप्पी Deepawali