शनिवार, 29 जनवरी 2011

ख्वाब


तहे जिन्दगी दर्द सहता

रहा हूँ मैं

किसी की याद मैं दम भरता

रहा हूँ मैं

ये मेरी जिन्दगी है या दर्दे दिल की दास्ताँ

जिसके लिए तिल तिल जलता

रहा हूँ मैं

न सोचा न समझा मैंने

खुद को अपने हाथों मिटा

रहा हूँ मैं

इंतजार मैं हूँ बहुत लम्बे सफ़र से

किसी के आने का इंतजार कर

रहा हूँ मैं ।

मेरी जिन्दगी उसके करीब ही होगी

जिसको ख्वाबों मैं बना

रहा हूँ मैं।

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

कल ..........

कई दिनों से उसे कल बहुत सता रहा था, बहुत परेशां कर रहा था ! लेकिन वह आज सुबह से ही कल की चिंता मैं बैठी हुयी थी, वह जो भी काम कर रही थी उसमे कल ही आ रहा था! कल ही तो .... मनु और मिली आएंगे ... मनु उसका कॉलेज का दोस्त था ॥ वह अपनी आराम कुर्सी पर बैठे हुए अतीत मैं खो जाती है ..........

जब उसका एडमिशन सेंट्रल कॉलेज मैं हुआ था, और वह अपने पापा के साथ पहली बार कॉलेज गयी थी चारों तरफ लड़कों, लड़कियों का खा झुण्ड था उसे बहुत ज्यादा घबराहट होने लगी थी, वह सोच रही थी कि इतनी भीड़ मैं पता नहीं मुझसे कौन बोलेगा, कोइ दोस्त बनेगा कि नहीं बनेगा वह इसी उधेड़ बुन मैं चली जा रही थी , उसे इतना भी ख्याल नहीं आया कि उसका क्लास रूम आ गया है, पापा ने उससे कहा कि तुम क्लास करने के बाद घर आ जाना मैं जाता हूँ वो केवल अपना सर हिला दी थी! उसके पापा बैंक मैं क्लेर्क थे, उसका न तो कोई भाई था नहीं कोई बहन, मैं बचपन मैं ही मर गयी थी पापा ने ही उसे पला था!

वह क्लास रूम मैं घुसी थी, सबकी नजरें उसी पर थीं वह आंख निचे करके चुपचाप एक डेस्क पर बैठ गयी थी! क्लास ख़त्म होने के बाद सरे लड़के, लड़कियां क्लास से बहार चले गए थे , वह अकेली ही बैठी हुयी थी, उसने एक गहरी साँस भरी और सर उठा कर एक ठंडी साँस छोड़ी थी कि सामने उसे एक पद्तला दुबला लड़का सर झुकाए हुए बैठा हुआ दिखा, वह उसे देखकर सोची कहीं यह भी मेरी ही तरह नया तो नहीं है यहं, वह उठी फिर बैठ गयी उसका दिल तो उससे कह रहा था कि वह जाकर उससे बात करे मगर उसका कॉलेज मैं पहला दिन था उसकी हिम्मत नहीं पड़ी !

वह शाम को घर पहुंची पापा ने पूछा तुम्हारा पहला दिन कैसा रहा वह मुरझाये हुए स्वर मैं बोली अच्छा नहीं रहा कोई भी दोस्त नहीं बना, पापा ने कहा कोई बात नहीं कुछ दिनों बाद बन जायेंगे !

वह अगले दिन फिर कॉलेज गयी वह क्लास रूम मैं पहुँचते ही उसकी नजरें कल वाले लड़के को खोजने लगी वह आज भी सबसे अलग बैठा हुआ था, वह आज सोच कर ई थी कि मुझे आज दोस्त बनाना ही है! वह उसके बगल वाली टेबल पर अपनी कॉपी रखते हुए पूछी क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ? वह मुस्कराता हुआ बोला जरुर मेरे साथ कोई नहीं है ! वह बैठते हुए बोली मैं अंजलि हूँ मेरा अद्मिस्सिओन कल ही हुआ है तुम्हारा क्या नाम है ...............

मनु ॥

वह बोला मेरा भी अद्मिस्सिओन नया है यहाँ के लड़कों, लड़कियां बड़े अजीब हैं बात ही नहीं करना चाहते चलो कैंटीन मैं बैठ कर काफी पीते हैं, और धीरे धीरे मेरी दोस्ती बढ़ गयी! मनु हमारे घर पर भी आने लगा था पापा भी बहुत खुश थे की मुझे दोस्त मिल गया था !

मैंने एक दिन उससे पूछा की मनु तुम्हारे पापा, मम्मी, भाई ... यार तुमने अपने बारे मैं कुछ नहीं बताया ? वह चुप रहा, वह मेरी तरफ देख रहा था और उसके आँखों से पानी गिरने लगा ... मैं समझ गयी की इसे यह सुनकर दुःख हुआ है मैंने तुरंत सॉरी कहा ! वह बोला तुम्हारे सॉरी कहने से सच्चाई नहीं बदल सकती और सच्चाई यह है की मैं अनाथालय मैं पला हूँ मेरा न तो कोई बाप है , न ही कोई माँ है और न ही भाई बहन है न ही मेरा कोई दोस्त है ले देकर एक तुम हो जिससे मैं बात कर लेता हूँ बस .... मुझे उस दिन मनु की बात सुनकर बहुत दुःख हुआ !

धीरे धीरे समय बीतता गया उसने अपनी स्नातक फर्स्ट क्लास और मैंने सेकंड क्लास से पास करी, वह मिठाई लेकर घर पर आया, पापा ने उससे पुचा की मनु आगे क्या करना है? वह बोला पापा, आपका आशीर्वाद रहा तो डी०एम० बनना चाहता हूँ। पापा न उसे गले लगाया और कहा मेरा आशीर्वाद हमेश तुम्हारे पास ही रहेगा मनु ।

मेरी दोस्ती कैसे प्यार मैं बदल गयी मुझे इसका अहसास नहीं था, वह एक दिन आया और कहा मैं दिल्ली जा रहा हूँ ई0 एस० की कोचिंग करने के लिए और जब ई0 एस० बन जाऊंगा तब आऊंगा। मैं कुछ नहीं कह सकी, मैं और पापा उसे स्टेशन तक छोड़ने गए, वह ट्रेन पर बैठा हुआ था हम लोक खिड़की पर खड़े होकर उससे बातें कर रह रहे थे तभी ट्रेन ने सिटी दी और ट्रेन सांप की तरह सरकने लगी, वह हाँथ निकल कर हिला रहा था और धीरे धीरे हमसे दूर होता जा रहा था, मेरी आंखे अनायास ही भर आयी पापा ने मुझे समझाया कइ वह ई0 एस० बनकर जरुर लोटकर आयेगा क्या तू नहीं चाहती की वह ई0 एस० बने, मैं पापा की बात सुनकर चुप हो गयी।

धीरे धीरे दिन गुजरते गए मनु का पत्र महीने मैं दो तिन मिल जाया करता था जिससे उसका हल चल मालूम होता रहता था। एक दिन उसका पत्र आया की वह PCS का एक्साम देना चाहता है वह क्या करे ? उसने मेरी राय मांगी मैंने लिखा की वह PCS का एक्साम जरुर दे। किस्मत ने उसका साथ दिया वह PCS मैं आ गया। यह सुनकर मैं बहुत खुश थी मंदिर जाकर प्रसाद भी चढाया। उसको यहाँ से गए हुए एक साल हो गए थे मैंने उसे लिखा की वह छुट्टी लेकर यहाँ घूम जाओ उसने लिखा की उसकी ट्रेनिंग चल रही है ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद जरुर आऊंगा और तुम्हार हाँथ से खाना खाऊंगा।

लेकिन होना कुछ और था पापा को एक दिन हार्ट मैं दर्द हुआ और वह मुझे अकेला छोड़ गए मुझे कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ मैंने मनु को फ़ोन करा मनु तुरंत आया सारा कम उसी ने करा वह दो दिन मेरे साथ रहा जब जाने लगा तो वह बोला अंजलि मेरी ट्रेनिंग ख़त्म होने वाली है मैं जल्दी ही आऊंगा तब हम दोनों शादी कर लेंगे। मैं उस समय कुछ नहीं बोली और वह चला गया। उसके जाने के बाद मैं सोचने लगी क्या एक बैंक क्लर्क (पापा के मरने के बाद मेरी सेरविसे बैंक मैं लग गए थी ) की शादी इतने बड़े अधिकारी के साथ होना ठीक है ? क्या मैं मनु के लिए ठीक हूँ? क्या शादी के बाद मेरी जो दोस्ती है वो कायेम रहेगी ? यही सोचती रही और रात निकल गयी और सुबह सुबह मैंने यह फैसला लिया नहीं मैं मनु से शादी नहीं करुँगी और जीवन भर अविवाहित ही रहूंगी।

मुझे मनु के कई पत्र पर मैंने अपना फैसला नहीं बदला वह बहुत गुस्से मैं था उसने मुझे तिन महीने तक कोए पत्र नहीं भेजे फिर एक दिन उसका एक पत्र प्राप्त हुआ उसमे लिखा था उसकी पोस्टिंग लखनऊ मैं है और वह मेरा अंतिम निर्णय जानना चाहता है मैंने उसे पत्र लिख कर कहा मनु यह मेरा अंतिम निर्णय है तुम हमारे बहुत अछे दोस्त हो और दोस्त ही बने रहो मैं अपने दोस्त को खोना नहीं चाहती। वह मेरी बात मन गया उसने अपने साथ की एक लड़की मिली से शादी करी उसने मुझे बुलाया, पर मैं जा न सकी चाहते हुए भी, बाद मैं उसकी फोटो उसने म्जुहे भेजी थी।

मैं यह सब सोचते सोचते सो गयी, नींद तब खुली जब दूध वाला घंटी बजाया, मैं हडबडा कर उठी दूध लिया फिर घर को सँवारने मैं लग गयी, वह सोचने लगी की इतने दिन तक मनु के पत्र मैं लिखे दिन तारीख बहुत दूर थे आज ये अचानक कब कल बन गए पता नहीं......... मनु मिली का कमरा वह कई दिन पहले ही ठीक थक करवा चुकी थी। उसे मालूम था मनु को चाय बहुत पसंद है इसीलिए उसने रेड लाबेल का बड़ा पैक मंगवाया था ।

आज वह सुबह से ही बहुत व्यस्त है, कितना लम्बा अरसा गुजर गया उसने अपने आपको कभी इतना व्यस्त नहीं महसूस किया, उसकी दिनचर्या मैं से बहुत सी चीजें निकल गयी थी, पापा का दफ्तर जाना, उसका कॉलेज जाना, सुबह की कॉल बेल हाँ... हाँ...... ना ... ना... इन्ही सब मैं एक और चीज निकल गयी थी वह था कल ..... कितने ही सालों से उसके सामने सिर्फ आज ही रहता है यह आज बिलकुल एक हड्डी रहित केचुएँ की तरह सारा दिन सरकता है ................... फिर वह सो जाती है, उठती है और एक दूसरा आज............ भद्दा सा कुरूप सा ..... अनचाहा सा ......... उसके सामने मुहँ बाये खड़ा दिखाई देता है ।

जब से मनु का पत्र आया है उसे बरसों से बिछड़ा हुआ कल अपने आसपास घूमता फिरता दिखाई देने लगा है। वह सोचने लगी लखनऊ से कशी विश्वनाथ सात बजे तक आ जाती है स्टेशन से निकलकर यहाँ तक पहुँचने मैं एक घंटा जरुर लग जायेगा तब तक वह नहा कर पूजा करके एक प्याला चाय भी पि चुकेगी, दूधवाला भी आ चूका होगा, सफाई करने वाली भी अपना कम ख़त्म कर चुकी होगी।

उसे याद आ गया की मनु अंग्रेजी पेपर ही पढता है और उसके पास हिंदी अख़बार आता है, उसे कल सुबह साढ़े पाच बजे के आसपास अख़बार वाले को भी कहना होगा।

और इन्ही सब बातो के बिच कल वह आ गया ............

और मनु, मिली की कार आठ बजे घर के सामने आकार रुकी मनु ने सर उठा कर बालकनी मैं मुझे देखा मैंने हाँथ उठा कर हेल्लो कहा और निचे उतरने के लिए सीढियों की तरफ बढ़ गयी।


......... तीनो बैठ कर चुप चाप चाय का आनंद ले रहे थे। तीनो उस दहलीज के अन्दर आ चुके थे जहाँ से वह रेगिस्तान शुरू होता है जिसे बुढ़ापा कहते हैं तीनों के चेहरे पर शोखी, कुछ लज्जा, कुछ हंसी और कुछ बीते हुए कल की यादों की छोटी छोटी पतली पतली पहाड़ी, जल धाराएँ बहने लगी थीं।

.... मनु नहाने चला गया ।

मनु को बेसन की पकोड़ी बहुत पसंद है न अंजलि ने पुछा ? मिली कुछ बोलती उससे पहले वो उठी और प्याज, हरी मिर्च काटने लगी। और कहने लगी मेरठ के लोगों को खाने पिने का बहुत शौक है छोले भठूरे, आलू वाली नॉन ढेर सारा दही, खीर बस सारा दिन खाते ही रहते हैं ... मिली बोली।

मनु नहा कर बाथरूम से निकला मिली बोली दीदी ने तुम्हारे लिए पकोड़ी बना रही है। वह हंस कर कहा मजा आ जायेगा बहुत लम्बा अरसा गुजर गया है इसके हाँथ की पकोड़ी खाए, वह लगभग तैयार हो चूका था डायनिंग टेबल पर बैठते हुए पूछा तुम लोग नाश्ता नहीं करोगी क्या?

एक तश्तरी मैं पकोड़ी रखकर अंजलि कीचन से बहार आते हुए बोली तुम अपने सेमिनार मैं जाओ हमें कोई जल्दी नही है। मनु का तीन दिन का सेमिनार उसके बाद दिल्ली मैं दो दिन और मिलना जुलना, सैर सपाटा, पहला कल सामने है और कुल मिलकर चार कल और हैं। कल शाम को शोपिंग करने भी जाना है वह सोचने लगी ।

उसके तीन चार कल मनु-मिली के साथ ऐसे गुजर गए जैसे किसी आर्मी परेड मैं सैनिकों के चुस्त-दुरुस्त दस्ते मंच के सामने से सलामी देते हुए गुजर जाते हों।

फिर वह कल आ गया जिसकी पदचाप उसे इन दिनों लगातार सुनायी दे रही थी। कल सुबह मनु-मिली वापस चले जायेंगे शाम को सब घूम फिर कर वापस आ गए तो मिली पेकिंग करने मैं लग गयी। शाम को चाय पीते समय ............... इधर उधर की बातें करते हुए समय ....... और यह कल बीच मैं लगातार खड़ा रहा । कल सुबह जल्दी जागना होगा .... नाश्ता जल्दी बनाना होगा।

वह अपने कमरे मैं सोने की कोशिश कर रही है .... नींद भी टुकड़ों मैं आ रही है। कल ये लोग चले जायेंगे कल से अंग्रेगी अख़बार बंद करना होगा । दूध वाले से भी मन करना होगा ..... कल उसे बैंक भी जाना है .... कल ... कल .... कल॥

-क्रमशः-
अश्कों को पीने से गम कम नहीं होता
गर दाग हो दमन मैं वह पाक नहीं होता
दोस्तों के रूठने से दोस्ती नहीं टूटती
इन रूठने रूठने से मुहब्बत नहीं टूटती
पेशानी की लकीरों से भाग्य नहीं बदलता
असुनों के बहने से दामन नहीं धुलता
दूसरों को गिराने मैं कोई गरूर नहीं होता
अपनों से लड़ने मैं कोई वीर नहीं होता ...

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

जिंदगी

जिंदगी सरक गयी
जैसे मुठी से रेत
समझ मैं न आया
कैसे बीती
जिंदगी गुजर गयी
जैसे शारीर से आत्मा
जब तक समझता
कुछ सम्भालता
जिंदगी बची ही नहीं
जैसे सूखे कुएं मैं पानी
पीछे पलट कर देखा
जिंदगी पहाड़ से नज़र आई
जैसे साहिल हो समंदर का
जिंदगी गुजर गयी
देखते देखते
कुछ करा कुछ न कर सका
हाँथ मलते रह गया
जैसे हरने पर खिलाडी
जिंदगी गुजर गयी
और मैं देखता ही रह गया ..................