गुरुवार, 6 जनवरी 2011

जिंदगी

जिंदगी सरक गयी
जैसे मुठी से रेत
समझ मैं न आया
कैसे बीती
जिंदगी गुजर गयी
जैसे शारीर से आत्मा
जब तक समझता
कुछ सम्भालता
जिंदगी बची ही नहीं
जैसे सूखे कुएं मैं पानी
पीछे पलट कर देखा
जिंदगी पहाड़ से नज़र आई
जैसे साहिल हो समंदर का
जिंदगी गुजर गयी
देखते देखते
कुछ करा कुछ न कर सका
हाँथ मलते रह गया
जैसे हरने पर खिलाडी
जिंदगी गुजर गयी
और मैं देखता ही रह गया ..................

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