मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

लिखा जाए...

किताबों मे रखे उस मोर के पंख पे लिखा जाए
मेरा दिल कहता है कि एक अच्छी सी लाईन लिखी जाए
इस बेपरवाह भीड़ मे न शौक है न सलीका
गजल किस के लिए, किसके लिए कविता लिखी जाए
वो पेड़, वो मोहब्बत, वो पर्वत छोड़कर आओ
किताबों मे दबे उस एक फूल पर लिखा जाए
बहुत इंकलाब करके मैं तन्हा हूँ  इस जमाने मे
किसे अपना और किसे पराया लिखा जाए
बदलते दौर के नेताओं का जिक्र क्या करना
अब नई राजनीति पे लिखा जाए ...
ज़िंदगानी मे बहुत फंस गए हम  यारों
दांतों मे फंसे उस तिनके पर अफसाना लिखा जाए ... 

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

बदलता मौसम

लो .... 
ये क्या मौसम बदलते ही 
तुमने रिश्तों का स्वेटर 
खोल दिया ... 
एक एक फंदे 
जो तुमने चढ़ाये थे 
इतने जतन से 
अचानक ही 
उन्हे उतार दिया .... 
इतने जल्दी तुम 
भी बदल गए 
इस मौसम की तरह 
चलो .... 
ऐसा करना 
मेरी यादों की सलाईयों को 
सहेज कर रख लेना 
फिर कभी ठंड आएगी 
और उस सलाईयों 
पर अहसासों के ऊन से 
फिर रिश्तों का स्वेटर 
बना लेना ... 
किसी अपने के लिए
रिश्तों के लिए 
नातों के लिए.... 

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

जब रोज मरा करते थे ...

बातें खत्म हो गई जिसका 
जिक्र हम किया करते थे ...
वो गलियाँ कहीं 
खो गईं जिनपे हम 
चला करते थे ... 
न शाम रही न धुआँ 
किसी एक भी 
चराग में... 
वो चले गए जिन्हे
हम देखा करते थे... 
हमको क्या हक़ है
अब, किसी को कुछ कहने का ,,, 
रास्ता वो सब छूट गए 
जिनपे हम मिला करते थे ... 
अब हमको क्या मारेगी 
क्या, ये दुनियाँ की विरनिया 
वो अंदाज और था जीने का 
जब रोज मरा करते थे ...