गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

.....कल का क्या ...


आज बुरा है !!!
तो क्या हुआ ...
कल अच्छा होगा
बहुत सुना है
बहुत गुना है
कल जरूर अच्छा होगा
और हम भागते रहे
उसी कल की  ओर
उसी अच्छे की ओर
रोज सपने देखते रहे
सँजोते रहे
बुनते रहे, गुनते रहे ...
उस अच्छे के लिए
एक एक दिन गुजरता रहा
हम इत्ते से उत्ते भी हो गए
और कल हमेशा
कल ही रहा ....
दौड़ता रहा... भागता रहा
हुयी रात तो सबेरा भी हुआ
मगर न आया
तो वो सुनहरा कल ...
समय बदला, दिन बदला
जगह बदली, लोग बदले
यहाँ तक कि हम भी बदले
लेकिन न मिला तो केवल वो कल
और आज को हम
कभी भी जी न सके
इस कल के भंवर मे
उस स्वप्न के सफर मे
उम्र के इस पड़ाव मे
जल कल कुछ नहीं है ...
तो आज को देखता हूँ
तो आज मे भी कुछ नहीं पाता हूँ
बहुत थक गया हूँ
इस कल के चक्कर मे
आज ही मे जीवन है
कल का क्या ...
कल तो कल ही है ....

आए न आए ... 

जीवन का सफर .....

  
जीवन के आपाधापी मे
अच्छा और अच्छा होने की ललक मे
अम्मू से आमोद बनने
के सफर मे
जो भी मिला उन हमसफर को मेरा
धन्यवाद !
साथ साथ चलते हुये
न जाने कितने स्नेह
कितने आत्मीयजन मिले
जिनका प्रतिबिंब आँखों मे
मेरी साँसों मे, खून मे
धमनियों में
अविरल गतिमान है
उन हमसफर को मेरा
धन्यवाद !
सफर के इस पड़ाव में
कितने हमसफर हमसे रूठे
उनकी हर बातें हमसे रूठी
उनका क्रोध, उनका प्यार
हमे मिला
उन हमसफर को मेरा
धन्यवाद !
जो मेरा था वो उनका था
उनकी सीख जो आज हमारी है
उन सभी का आशीर्वाद
जिसने मुझे यहाँ तक पहुंचाया
उनकी मेहनत
जिसने ये दिन दिखाया
उन हमसफर को मेरा
धन्यवाद !
वाकई उनके बिना ये
सफर अधूरा था
अपूर्व था
आज इस मंजिल तक जिसने
पहुंचाया उन सभी हमसफर को मेरा
धन्यवाद !



बड़े पापा

बड़े पापा के जाने के बाद भी
मैं सुन सकता हूँ उनकी खाँसती आवाज
और उस आवाज के साथ
रेल की  आवाज भी
वह मरफ़ी का ट्रांजिस्टर
आलमारी मे लगा हुआ और
उनका उसपर आकाशवाणी का समाचार
बाहर आँगन मे लगे पौधे
पीछे उगी कुछ सब्जियाँ, पपीते के पेड़
अमरूद मे पानी लगाने की चिंता
सुबह सुबह अखबार का आना
और चाय के साथ उसका बांचना
और कभी कभी  .... हमारा
इम्तहान ....
जिंदगी के शाम को सुबह का इंतजार
वो रात को दूध का ग्लास
दावा का डिब्बा
वह सुबह .... वह आँगन ...
अमरूद का पेड़
नींबू का पौधा, तुलसा का पेड़
वह भूरा, वह कल्लू ...
जैसे जूठन पर अधिकार जामाता  कुत्ता
जिसकी आँखों मे हिंसा कम प्यार ज्यादा
बैठा रहता था बाहर वाले
दरवाजे पर ... चौकन्ना
अब तो बड़े पापा की स्मृतियाँ ही शेष रह गई
बरामदे मे रखा शीशम का तख़्ता
कमरे मे रखा वो पुराना पलंग
दिमाग मे अभी भी सहेज कर रखा है
उनकी कुर्सी, उनकी तकिया
अभी भी है सहेजा रखा दिमाग के पटल पर
हाँ एक तोता भी था
वो तोता भी उड़ गया कहीं
वह पिंजड़ा भी खाली है ....
यह स्मृति है .... स्मृति का क्या
अब तो स्मृति ही शेष बची है
चलो अब यहाँ से ....
कल अपनी भी बारी होगी
कुछ ऐसी ही तैयारी होगी.....

पित्र पक्ष पर बड़े पापा को मेरा चरण स्पर्श ...