रविवार, 17 जून 2012

आज रविवार है और सुबह से शाम  तक में  अपने बुद्धू बक्से के सामने बैठा प्रणव दा और कलाम साहेब के बारे में देख रहा था ... और  सच पूछिये तो  थक गया था... तभी मेरे  बेटे आयुष और बेटी माही आये .. और कमरे के बाहर से ही कहने लगे ..पापा अपनी आँखे बंद करो ... मैंने इमानदारी से अपनी आँखे बंद  करी ... दोनों ने  मेरे हाँथ  में एक उपहार रखा .... और चिल्लाये हैप्पी फादर डे .... मेरे  लिए उन दोनों ने एक  सुन्दर डायरी और पेन दिया ... 


मुझे आज अपने  पापा जी की कमी महसूस हुई ... जब वो थे तो  हमें इस  फादर डे के बारे  में  पता नहीं  था ....मगर आज  सबको  पता  है ... हम अंग्रेजी  संस्कृति की जम के आलोचना करते हैं ...मगर उसी ईमानदारी से हमें  उनकी अच्छी चीजों की सराहना भी करनी चाहिए ...



धन्यवाद् ... आयुष  और  माही ..... 

बुधवार, 13 जून 2012

अश्कों  को  पीने  से गम  कम नहीं होता ...
गर दाग हो दामन  में  वह  पाक नहीं होता...
पेशानी की लकीरों  से भाग्य नहीं बदलता ...
आसुंओं क़े  बहने  से दामन नहीं धुलता ...