सोमवार, 27 मई 2013

जिंदगी

जिंदगी
दर्द है या गम,
कि है नीरस सावन,
या कागज कोरा..
जाती हुयी शाम को ..
आती हुयी रात को ..
खिलखिलाती वो हंसी को,
पंक्षियों के कोलाहल को...
उसको है विश्वास
आएगा फिर सुप्रभात ..
होगी हर तरफ रौशनी ..
न होगी कोई परेशानी ..
जिंदगी है ..
बस यही  विश्वास .. विश्वास.. विशवस ..

शुक्रवार, 24 मई 2013

कल ........

कई दिनों से उसे कल बहुत सता  रहा था, बहुत परेशान कर रहा था। लेकिन वह आज सुबह से ही कल की चिंता में बैठी हुयी थी, वह जो भी काम कर रही थी उसमे कल ही आ रहा था। कल ही तो मनु और मिली आयेंगे ! मनु उसका कॉलेज का दोस्त था, वह अपनी आराम कुर्सी पर बैठे हुए अतीत में खो जाती है… 

जब उसका एडमिशन सेंट्रल कॉलेज में हुआ था और वह अपने पापा के साथ पहली बार सेंट्रल कॉलेज गयी थी, चारों तरफ लड़कों, लड़कियों की भीड़ थी उसे बहुत ज्यादा घबराहट होने लगी थी, वह यह सोच रही थी कि इतनी भीड़ में पता नहीं मुझसे कोई बोलेगा या नहीं, कोई दोस्त बनेगा या नहीं, वह इसी उधेड़ बुन में  चली जा रही थी, उसे इतना भी ख्याल नहीं आया कि उसका क्लास रूम आ गया है, पापा ने उसे कहा कि  तुम क्लास करने के बाद घर आ जाना में वापस जा रहा हूँ .. उसने केवल अपना सर हिला  दिया, उसके पापा बैंक में क्लर्क थे उसका न कोई भाई था न बहन थी माँ बचपन में ही मर गयी थी, पापा ने ही उसे पाला था।

वह क्लास रूम में  प्रवेश करी ही थी, कि   सबकी  नज़रें उसे घूरने लगीं वह आँखे निचे करके चुपचाप एक डेस्क पर बैठ गई। क्लास ख़त्म होने के बाद सारे लड़के लड़कियां क्लास से बाहर  चले गए, वह अकेली ही बैठी हुयी थी, उससे किसी ने भी बात नहीं करी ...  इससे वह बहुत दुखी थी उसने एक   गहरी साँस  भरी और सर उठा कर एक ठंडी साँस  छोड़ते हुए सामने देखा  तो उसे एक पतला दुबला  लड़का सर झुकाए  हुए  दिखाई दिया, वह उसे देखकर सोची, कही यह भी हमारी तरह नया  तो नहीं, वह उठी  और फिर कुछ सोचकर बैठ गयी ... उसका दिल तो उससे कह रहा था कि  वह जाकर उससे बात करे मगर उसका कॉलेज में आज पहला दिन था  और इसीलिए वो हिम्मत नहीं कर पा रही थी।

वह अगले दिन फिर कॉलेज गयी .. क्लास रूम में घुसते ही उसने सबसे पहले उस लड़के को खोजा, वह आज भी सबसे अलग बैठा हुआ था। लेकिन वह आज सोच कर आई  थी कि  उसे दोस्त बनाना ही है। वह उसके बगल वाली टेबल पर अपनी कॉपी रखते हुए पूछी कि  क्या में यहाँ बैठ सकती हूँ .... ? वह मुस्कराते हुए बोला .. जरुर मेरे साथ कोई नहीं है .... वह बैठते हुए बोली में अंजलि हूँ  मेरा  एडमिशन कल ही हुआ है तुम्हारा क्या नाम है ?

मनु .... लड़के ने बोला…

कुछ दिनों के बाद मेरी उससे बहुत अच्छी  दोस्ती हो गयी .. मनु हमारे घर पर  भी आने लगा और पापा बहुत खुश थे कि मुझे कोई दोस्त मिल गया .. और में भी बहुत खुश थी।

मेने एक दिन मनु से पूछा  कि  तुम्हारे पापा, मम्मी, भाई, बहन .... तुमने अपने बारे में कभी कुछ बताया नहीं .... ? वह चुप रहा, वह मेरी तरफ देख रहा था और उसके आँखों में आंसू  आ गए थे ...  में समझ गयी  कि  उसे बहुत दुःख हुआ है ... मैंने कहा सॉरी ... वो बोला कि  तुम्हारे सॉरी कह देने से  सच्चाई तो नहीं बदल सकती और सच्चाई यह है कि  में अनाथालय  में पला हूँ  मेरा न तो कोई बाप है और न ही कोई माँ  है… और न ही कोई दोस्त…. में अवाक रह गयी।

धीरे धीरे समय बितता  गया उसने और मेने ग्रेजुएशन एक साथ ही करा . एक दिन पापा ने उससे पूछा कि मनु आगे क्या करना है तो उसका जवाब था कि  आपका आशीर्वाद रहा तो  आई . ए . एस . बनना  है ... पापा ने कहा वो तो हमेशा ही रहेगा।

मेरी दोस्ती  कब  प्यार में बदल गयी इसका अहसास मुझे नही हुआ,  वह एक दिन आया और कहने लगा कि में इलहाबाद जा रहा हूँ आई . ए . एस   की कोचिंग  करने जब आई . ए . एस   बन जाऊंगा तब आऊंगा, मैंने उससे कहा तुम जाना चाहते हो तो जाओ।

में और पापा उसे छोड़ने स्टेशन तक  गए, वह ट्रेन में बैठा हुआ था हम लोग खिड़की पर  खड़े उससे बात कर रहे थे, ट्रेन ने सिटी दी और साँप  की तरह सरकने लगी .. वह हाथ निकाल कर हिला रहा था वह धीरे धीरे हमसे दूर जा रहा था, मेरी आँखे अनायास ही भर आयी।

धीरे- धीरे दिन  बीतते  गए मनु का पत्र मुझे महीने में दो-चार  मिल जाया करता था जिससे  उसका हाल चाल ज्ञात होता रहता था। एक दिन उसका पत्र आया कि  वह प़ी० सी० एस०  का एग्जाम देना चाहता है .. वह क्या करे? उसने मेरी राय  मांगी थी, मैंने लिख दिया कि वो जरुर दे एग्जाम। किस्मत ने उसका साथ दिया वह पी० सी० एस० में आ गया। यह समाचार सुनकर में बहुत खुश हुयी तुरंत मंदिर जाकर प्रसाद भी चढ़ा आयी। उसको मेरे पास से गए पूरा एक साल ४ महिना हो चूका था। मैंने उसे लिखा कि  वह छुट्टी लेकर यहाँ घूम जाये .. उसने मुझसे कहा कि  अभी उसकी ट्रेनिंग चल रही है .. ट्रेनिंग पूरी होते ही वो आ जायेगा।

लेकिन होना तो कुछ और ही था  पापा को हार्ट अटैक आया और वह मुझे अकेला छोड़ गए, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, में क्या करूँ, मैंने मनु को फ़ोन करा दिया था, मनु तुरंत आया सारा काम उसी ने करा और तेरहवीं करके जब वो जाने लगा तो उसने कहा अंजलि मेरी ट्रेनिंग पूरी होने वाली है ... ट्रेनिंग पूरी होते ही में आता हूँ  और अगर तुम्हे कोई ऑब्जेक्शन न हो तो में तुमसे शादी करना चाहता हूँ। में उस समय कुछ नहीं बोली .. वह चला गया, उसके जाने के बाद मैंने बहुत सोचा कि  क्या एक बैंक क्लर्क(पापा की जगह मुझे सर्विस मिल गयी थी)  की शादी पी ० सी ० एस ० अधिकारी से हो सकती है .. .. क्या ये सही रहेगा?  क्या शादी करने के बाद हमारी और मनु की दोस्ती कायम रहेगी ... ? और सारी रात करवटें बदलती रही .. और फिर मैंने ये निश्चय किया कि  में मनु से शादी नहीं  करुँगी .. और आजीवन अविवाहित ही रहूंगी।

मुझे मनु के कई  पत्र प्राप्त हुये, मैंने अपना निर्णय उसे लिख भेजा ... वह बहुत गुस्से मे रहा उसने मुझे तीन महीने तक कोई पत्र नहीं भेजा था ....  फिर एक दिन उसका पत्र प्राप्त हुआ कि उसकी पोस्टिंग इस समय लखनऊ मे हो गई है  और वह मेरा अंतिम निर्णय जानना चाहता था मैंने उसे जवाब दे दिया कि मेरा निर्णय अंतिम ही है .. में शादी नहीं करुँगी .. अंत में वो हार कर .. अपने ही बैच  की मिली नामक लड़की से शादी करी, उसने मुझे शादी में बुलाया था  मगर में  गयी नहीं थी।

 उसकी तन्द्रा तब टूटी जब दूध  वाले ने  आकर डोर बेल बजाई, वह हड़बड़ा  कर उठी दूध लिया फिर घर को सँवारने में लग गयी, वह सोचने लगी कि  इतने दिन तक मनु के पत्र में लिखे दिन तारीख दूर थे लेकिन आज वे कब कल बन गए पता ही नहीं चला। मनु मिली का कमरा  वह कई दिन  पहले ही ठीक ठाक करवा दिया था, उसे याद था कि  मनु को चाय  पसंद नहीं है इसीलिए उसने नेसकेफे  का नया डिब्बा मंगवाया है।

आज वह सुबह से ही बहुत व्यस्त थी एक लम्बा अरसा गुजर गया  उसने अपने आपको कभी व्यस्त महसूस नहीं किया, उसकी दिनचर्या में से बहुत सी चीजे निकल गयी थी, पापा का दफ्तर जाना, उसका कॉलेज जाना, सुबह की भाग- दौड़, हंसी, घूमना, चूल्हे पर दूध, फ्लेट के बाहर बजती हुयी काल बेल, हाँ ..... ना…… हाँ .... ना ....  इन्ही सब के बीच  एक और चीज निकल गयी थी वह "कल" था ... कितने ही सालों से उसके सामने सिर्फ आज ही रहता है और यह "आज" बिलकुल एक हड्डी रहित केचुए की तरह सारा दिन  सरकता है ... फिर वह सो जाती है उठती है सामने मुंह बाए वाही आज खड़ा दिखाई देता है।

जब से मनु की चिट्ठी आयी है, उसे बरसों से बिछड़ा हुआ कल अपने आसपास घूमता - फिरता दिखाई देने लगा है। वह सोचने लगी लखनऊ से काशी विश्वनाथ  सात बजे तक आ जाती है स्टेशन  से निकलकर यहाँ तक पहुंचने में एक घंटे  जरुर लग जायेगा .. तब तक वह नहा धो कर पूजा  करके एक प्याला चाय भी पि चुकेगी ... दूधवाला आ  चूका होगा, सफाई करने वाली भी अपना काम ख़त्म कर चुकी होगि।  उसे याद आ गया कि  मनु इंग्लिश का अखबार पढता है और उसके पास हिंदी का अखबार आता है, उसे कल सुबह साढ़े सात बजे के आसपास अखबार वाले को भी कहना होगा।

............ और  वो कल आ ही गया।

और मनु और मिली की कार आठ बजके १० मिनट पे घर के सामने खड़ी  हुयी थी मनु ने  सर उठा कर बालकनी में मुझे देखा  मेने हाथ उठा कर हेलो  कहा  और निचे उतरने वाली सीढियों की तरफ बढ़ी ....  उन्हें लेकर  में रूम में आ गयी ....  मनु बोल तुम दोनों गप्पे मारों मुझे एक सेमिनार में १० बजे जाना है ... ये कहता हुआ वो बाथरूम में चला गया।

हम तीनो उस दहलीज के अन्दर आ चुके हैं जहाँ से वह रेगिस्तान शुरू होता है जिसे बुढ़ापा कहते हैं, तीनों के चेहरे पर शोखी, कुछ लज्जा, कुछ हंसी और कुछ बीते हुए कल की यादों की छोटी छोटी  पतली पतली पहाड़ी और जल धाराएँ  बहने लगी हैं ।

मनु जब तक फ्रेश हो रहा था हम दोनों ने उसकी मनपसंद पकोड़ी  तैयार कर ली, मनु नहा कर बाहर आया तो मिली बोली दीदी ने तुम्हारे लिए पकोड़ी बना रही है ...  मनु बालों को कंघी करते हुए बोल .. वाह मज़ा आ जाएगा अरसा हुआ इसके  हाँथ की पकोड़ी खाए हुए .. वह लगभग तैयार हो गया था .. डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए उसने कहा क्या तुम लोग नाश्ता नहीं करोगे ?  प्लेट में पकोड़ी लाते हुए अंजलि ने कहा कि  तुम कर के निकल जाओ .. हमें कोई जल्दी नहीं है आराम से कर लेंगे।

मनु का तीन दिन का सेमिनार  उसके बाद दिल्ली में दो दिन और  मिलना जुलना, सैर सपाटा पहला कल  सामने है और कुल मिलकर  चार कल और हैं .. कल शाम  को शोपिंग करने भी जाना है।

उसके तीन -चार कल  मनु मिली के साथ ऐसे गुजर  गए जैसे किसी आर्मी परेड में सैनिकों के चुस्त-दुरुस्त  दस्ते मंच के सामने से सलामी देते हुए गुजरते हों ....

और फिर वह कल आ गया जिसकी पदचाप उसे इन दिनों उसे लगातार सुनायी दे रही थी। कल सुबह मनु - मिली वापस चले जायेंगे। शाम को सब घूम फिर कर वापस आ गए थे मिली पेकिंग करने में लगी हुयी थी, समय भाग रहा था .. और बार बार ये कल बीच  में आ जाता था।

कल उसे बहुत जल्दी उठना होगा ... नाश्ता बनाना होगा, वह अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रही थी ............ नींद भी टुकड़ों में आ रही थी, कल ये लोग चले जायेंगे, कल से अंग्रेजी वाला अखबार बंद करना होगा .. दूध वाले से भी मना करना होगा ... कल उसे बैंक भी जाना  है ... कल ..... कल ... और सिर्फ . कल ........





मंगलवार, 21 मई 2013

टू -ईन -वन

आज मेरी नज़र ऊपर तांड  पर पड़ी वहां धुल में सना  उसकी आगोश में समाया हमारा जो कभी आँखों का तारा , हमारा प्यारा हुआ करता था टू -ईन -वन  महोदय पर जब पड़ी और उनकी यह दुर्दशा  हमसे न देखी गयी और आँखों के सामने  न जाने कितनी तस्वीर  चलने  लगी ....

बात उस समय की है जब हमारे घर में एक बड़ा सा रेडिओ जो लकड़ी के एक बॉक्स में हुआ  करता था। सामने की आलमारी में रखा हुआ जिसपर क्रोशिये से बनाई  गई सुन्दर सी चादर पड़ी रहती थी। और हम सभी बड़े ही शौक से उसका आनन्द  लिया करते थे। सबका अपना अपना समय बंधा होता था, सुबह सुबह के समय उसी चिर परिचित आवाज में
रामायण की चौपाई कुछ देर बाद सात बजे एक मोटी  सी आवाज में यह कहना कि  "ये आल इंडिया रेडिओ है ... अब आप दिनेश कुमार से समाचार सुने " उसके बाद ये विविध भारती है  अब आप नए-पुराने गानों का आनंद ले… उस समय फरमाईश से गाने बहुत आते थे और उसमे झुम्रिताल्लईया  का नाम जरुर आता था ... और उसका भी अपना मजा था। शाम के ५ बजते ही  एक कर्णप्रिय ध्वनि के साथ "बाल - जगत"  का आगमन, सायें 7.30 बजे  बी .बी .सी .  का लगना  और पापा जी का रेडिओ से चिपक कर बैठना .... इन सभी का अपना अलग अलग आनंद था।

समय और विज्ञानं कभी नहीं रुकता है  और न रुका हमारा रेडिओ ख़राब हुआ, बीमार हुआ और बंद हो गया पूरे  घर में जैसे मातम सा छा  गया, उस समय एक रेडिओ मकेनिक  हुआ करता था जिसका नाम था  "बाबू" हम लोगों ने उसे "बाबू" के घर पहुंचा दिए, बाबू ने उसे बनाया मगर कुछ दिनों बाद  वो हमारा रेडिओ मैकेनिक  बाबू नहीं रहा और धीरे धीरे हमारा रेडिओ भी बिमार  रहने लगा।

एक दिन अचानक हमारे घर में पापा जी ने एक नया अवतार ले आये जिसे बताया गया कि  इसका नाम टू -ईन -वन  है जिसमे केसेट और रेडिओ दोनों एक साथ बज सकते है ... फिर क्या था नए अवतार ने पुरानी  यादों को धूल  में मिला दिया और हम सब लग गए अपने अपने पसंद के केसेट्स  को बटोरने में  आलमारी में अनूप जलोटा, हरिओम शरण, आरतियाँ इत्यादि  पुराने गाने के केसेट्स  जो एच . एम . वी . के होते थे  बहुत शान से सामने सजे रहने लगे।

हम सभी ने टू - ईन -वन  का जमकर आनंद उठाया मगर एक दिन  उसकी आवाज बैठ गयी ऐसा लगा जैसे उसे ठण्ड लग गयी हो, वो बीमार हो गया और फिर किसी "बाबू " की तलाश की गयी और  हमें उसके साथ दुकान पर भेज गया, दूकान पर पहुँचते ही मैंने अपनी "काग आँखे"  मेकेनिक पर लगा ली कि  वह क्या कर रहा है, उसने  सबसे पहले  हमारे टू - ईन -वन  को सामने से खोल मेरी नज़र यही देख रही थी कि  वह क्या क्या खोलता है, फिर  उसने एक तरल पदार्थ  लिया मैंने पूछा  कि  यह क्या है वो बोला "स्प्रिट" है ....  फिर उसने जहाँ केसेट्स लगाई जाती थी उसके उपरी  हिस्से में स्प्रिट लगाई  और फिर हमारे टू - ईन -वन  को बाँध दिया, अब हमारे टू - ईन -वन  की आवाज  सही हो गयी और हम उसे लेकर घर आ गए .. मगर उस दिन से  यह इन्तजार करने लगे कि  हमारा ये टू - ईन -वन  कब फिर ख़राब हो और हम इसे खोले।

वह दिन भी आ गया  उसका गला फिर बैठ गया .. और इस बार मैंने बहुत ही बहादुरी से एक दोस्त की मदद से  अपने टू - ईन -वन  को खोल दिए  और कहीं से स्प्रिट भी मिल गयी  जिसको एक ढक्कन  भर कर हमने उपर की हिस्से  में डाल  दिए , रुमाल से पोंछ भी दिए और जब उसे बंद करने लगे तो बंद करना भूल गए और वो बंद नहीं हो पाया, डर  के मारे हमारी हालत ख़राब हो गयी, हमने डरते हुए मम्मी को बताया और मम्मी ने हमें थोडा बहुत डांटा  और दुकान पे ले गयी  दूकानदार ने भी थोड़ी बहुत ना -नुकुर  करते हुए उसे ठिक  करने लगा और हमारी नज़र फिर ये देखने में व्यस्त हो गयी कि  वो क्या कर रहा है।

हम सभी ने अपने टू - ईन -वन  का पूरा मज़ा लेने लगे  एक दिन उसमे रामायण चल रही थी लंकाकाण्ड था और तभी एक अजीब सी आवाज आने लगी  ऐसा लगा कि  सारे  राक्षस  हमारे ही टू - ईन -वन  में आ गए हो… जब तक हम कुछ समझते हमारा प्यारा टू - ईन -वन  बंद हो गया और हम दौड़ कर उसे देखने  गए तो यह ज्ञात हुआ कि केसेट् की रील फंस गयी है  बस….. हमने उसे फिर खोल दिया और रील निकालने के चक्कर में हमने उसका हेड ही निकाल दिया ... बहुत मार पड़ी और ये चेतावनी भी दी गयी कि  आगे से कभी हाँथ लगाया तो हाँथ काट दिया जाएगा।

हमारा प्यारा टू - ईन -वन  फिर बना और फिर बजा और बजता ही रहा ... एक दिन उसका रेडिओ ठिक  से नहीं बज रहा था और हमारे खुराफाती दिमाग ने कहा कि अगर इसके एंटीने में एक तार बाँध कर खिड़की से बाँध दिया जाय  तो रेडिओ की आवाज अच्छी  हो सकती है ... मैंने ऐसा ही करा  और वाकई आवाज अच्छी  हो गयी ...  घर में मेरी थोड़ी बहुत तारीफ़ भी हुयी .. मगर इस तारीफ़ से मुझे बहुत बल मिला  और मेने ये सोचा कि  अगर ये तार अन्दर से लगा दिया जाये  तो और भी आवाज अच्छी हो  जानी  चाहिए ... .. और इस बार मैंने कुछ ऐसा करा कि  हमारा प्यारा टू - ईन -वन दुबारा नहीं बज पाया  और दादा (बड़े भय्या) ने हमें ही बजा दिया ... .  और हमारा प्यार टू - ईन -वन ऊपर रख दिया गया।

आज भी टू - ईन -वन  तो वही  है धूल  में है और निश्चल  पड़ा है .... मगर मेरे पास बस वो अहसास है इसके बजने का  और मेरे बजने का ...  हमारा प्यारा टू - ईन -वन ......

गुरुवार, 9 मई 2013

सूखा दरख़्त


जाओ तुमको तुम्हारे हाल पे 
मेने छोड़ दिया 
तुमको इससे ज्यादा में और 
दे भी क्या सकता था ... 
देखो इस   सूखे दरख्त को जिसने 
बहुत फल खिलाये थे .. पर… 
आज यहाँ परिंदा भी अपना  घोसला 
नहीं बनाता .. 
ये खड़ा है .. और कल शायद नहीं रहेगा ... 
लोग गुजर रहे हैं .. और गुजरते रहेंगे  भी .. 
ये दौरे सफ़र है .. आज मेरा है ... 
कल तेरा भी होगा . .. ..


बुधवार, 1 मई 2013


ये जो झुर्रियों के बीच...
चमकती थी ये आँखें.. 
मुझे अब भी इस मुकाम पे .. 
जवान बनाती थी ये आँखे ... 
मेरा मन, मेरा दिल, मेरा दिमाग ... 
सब पढ़ लेती थी ये आँखें... 
अब, जब सब है इस मुकाम पे ..
तब, गर कुछ नहीं है तो..
बस माँ... तू और तेरी वो आँखे..