मंगलवार, 21 मई 2013

टू -ईन -वन

आज मेरी नज़र ऊपर तांड  पर पड़ी वहां धुल में सना  उसकी आगोश में समाया हमारा जो कभी आँखों का तारा , हमारा प्यारा हुआ करता था टू -ईन -वन  महोदय पर जब पड़ी और उनकी यह दुर्दशा  हमसे न देखी गयी और आँखों के सामने  न जाने कितनी तस्वीर  चलने  लगी ....

बात उस समय की है जब हमारे घर में एक बड़ा सा रेडिओ जो लकड़ी के एक बॉक्स में हुआ  करता था। सामने की आलमारी में रखा हुआ जिसपर क्रोशिये से बनाई  गई सुन्दर सी चादर पड़ी रहती थी। और हम सभी बड़े ही शौक से उसका आनन्द  लिया करते थे। सबका अपना अपना समय बंधा होता था, सुबह सुबह के समय उसी चिर परिचित आवाज में
रामायण की चौपाई कुछ देर बाद सात बजे एक मोटी  सी आवाज में यह कहना कि  "ये आल इंडिया रेडिओ है ... अब आप दिनेश कुमार से समाचार सुने " उसके बाद ये विविध भारती है  अब आप नए-पुराने गानों का आनंद ले… उस समय फरमाईश से गाने बहुत आते थे और उसमे झुम्रिताल्लईया  का नाम जरुर आता था ... और उसका भी अपना मजा था। शाम के ५ बजते ही  एक कर्णप्रिय ध्वनि के साथ "बाल - जगत"  का आगमन, सायें 7.30 बजे  बी .बी .सी .  का लगना  और पापा जी का रेडिओ से चिपक कर बैठना .... इन सभी का अपना अलग अलग आनंद था।

समय और विज्ञानं कभी नहीं रुकता है  और न रुका हमारा रेडिओ ख़राब हुआ, बीमार हुआ और बंद हो गया पूरे  घर में जैसे मातम सा छा  गया, उस समय एक रेडिओ मकेनिक  हुआ करता था जिसका नाम था  "बाबू" हम लोगों ने उसे "बाबू" के घर पहुंचा दिए, बाबू ने उसे बनाया मगर कुछ दिनों बाद  वो हमारा रेडिओ मैकेनिक  बाबू नहीं रहा और धीरे धीरे हमारा रेडिओ भी बिमार  रहने लगा।

एक दिन अचानक हमारे घर में पापा जी ने एक नया अवतार ले आये जिसे बताया गया कि  इसका नाम टू -ईन -वन  है जिसमे केसेट और रेडिओ दोनों एक साथ बज सकते है ... फिर क्या था नए अवतार ने पुरानी  यादों को धूल  में मिला दिया और हम सब लग गए अपने अपने पसंद के केसेट्स  को बटोरने में  आलमारी में अनूप जलोटा, हरिओम शरण, आरतियाँ इत्यादि  पुराने गाने के केसेट्स  जो एच . एम . वी . के होते थे  बहुत शान से सामने सजे रहने लगे।

हम सभी ने टू - ईन -वन  का जमकर आनंद उठाया मगर एक दिन  उसकी आवाज बैठ गयी ऐसा लगा जैसे उसे ठण्ड लग गयी हो, वो बीमार हो गया और फिर किसी "बाबू " की तलाश की गयी और  हमें उसके साथ दुकान पर भेज गया, दूकान पर पहुँचते ही मैंने अपनी "काग आँखे"  मेकेनिक पर लगा ली कि  वह क्या कर रहा है, उसने  सबसे पहले  हमारे टू - ईन -वन  को सामने से खोल मेरी नज़र यही देख रही थी कि  वह क्या क्या खोलता है, फिर  उसने एक तरल पदार्थ  लिया मैंने पूछा  कि  यह क्या है वो बोला "स्प्रिट" है ....  फिर उसने जहाँ केसेट्स लगाई जाती थी उसके उपरी  हिस्से में स्प्रिट लगाई  और फिर हमारे टू - ईन -वन  को बाँध दिया, अब हमारे टू - ईन -वन  की आवाज  सही हो गयी और हम उसे लेकर घर आ गए .. मगर उस दिन से  यह इन्तजार करने लगे कि  हमारा ये टू - ईन -वन  कब फिर ख़राब हो और हम इसे खोले।

वह दिन भी आ गया  उसका गला फिर बैठ गया .. और इस बार मैंने बहुत ही बहादुरी से एक दोस्त की मदद से  अपने टू - ईन -वन  को खोल दिए  और कहीं से स्प्रिट भी मिल गयी  जिसको एक ढक्कन  भर कर हमने उपर की हिस्से  में डाल  दिए , रुमाल से पोंछ भी दिए और जब उसे बंद करने लगे तो बंद करना भूल गए और वो बंद नहीं हो पाया, डर  के मारे हमारी हालत ख़राब हो गयी, हमने डरते हुए मम्मी को बताया और मम्मी ने हमें थोडा बहुत डांटा  और दुकान पे ले गयी  दूकानदार ने भी थोड़ी बहुत ना -नुकुर  करते हुए उसे ठिक  करने लगा और हमारी नज़र फिर ये देखने में व्यस्त हो गयी कि  वो क्या कर रहा है।

हम सभी ने अपने टू - ईन -वन  का पूरा मज़ा लेने लगे  एक दिन उसमे रामायण चल रही थी लंकाकाण्ड था और तभी एक अजीब सी आवाज आने लगी  ऐसा लगा कि  सारे  राक्षस  हमारे ही टू - ईन -वन  में आ गए हो… जब तक हम कुछ समझते हमारा प्यारा टू - ईन -वन  बंद हो गया और हम दौड़ कर उसे देखने  गए तो यह ज्ञात हुआ कि केसेट् की रील फंस गयी है  बस….. हमने उसे फिर खोल दिया और रील निकालने के चक्कर में हमने उसका हेड ही निकाल दिया ... बहुत मार पड़ी और ये चेतावनी भी दी गयी कि  आगे से कभी हाँथ लगाया तो हाँथ काट दिया जाएगा।

हमारा प्यारा टू - ईन -वन  फिर बना और फिर बजा और बजता ही रहा ... एक दिन उसका रेडिओ ठिक  से नहीं बज रहा था और हमारे खुराफाती दिमाग ने कहा कि अगर इसके एंटीने में एक तार बाँध कर खिड़की से बाँध दिया जाय  तो रेडिओ की आवाज अच्छी  हो सकती है ... मैंने ऐसा ही करा  और वाकई आवाज अच्छी  हो गयी ...  घर में मेरी थोड़ी बहुत तारीफ़ भी हुयी .. मगर इस तारीफ़ से मुझे बहुत बल मिला  और मेने ये सोचा कि  अगर ये तार अन्दर से लगा दिया जाये  तो और भी आवाज अच्छी हो  जानी  चाहिए ... .. और इस बार मैंने कुछ ऐसा करा कि  हमारा प्यारा टू - ईन -वन दुबारा नहीं बज पाया  और दादा (बड़े भय्या) ने हमें ही बजा दिया ... .  और हमारा प्यार टू - ईन -वन ऊपर रख दिया गया।

आज भी टू - ईन -वन  तो वही  है धूल  में है और निश्चल  पड़ा है .... मगर मेरे पास बस वो अहसास है इसके बजने का  और मेरे बजने का ...  हमारा प्यारा टू - ईन -वन ......

14 टिप्‍पणियां:

  1. purani bahut see yade taza kar dee hain aapne . बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .आभार . बाबूजी शुभ स्वप्न किसी से कहियो मत ...[..एक लघु कथा ] साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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  2. आदरणीय डॉ शिखा कौशिक जी आपका धन्यवाद् ....

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  3. आदरणीय शालिनी कौशिक जी आपका धन्यवाद् ....

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  4. आदरणीय अमन भाई आपका धन्यवाद् ....

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    1. मुकेश कुमार सिन्हा जी बहुत बहुत आभार.....

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  6. हा हा हा ... आपने मेरी भी यादें ताज़ा कर दी ... एक बड़ा रेडियो हमारे यहाँ भी हुआ करता था ... 5 साल का था मैं जब उसके सामने की पूरी जाली यह देखने के लिए काट दी थी कि इस छोटे से बक्से मे कौन कौन छिपा बैठा है ... ;)




    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अच्छा - बुरा - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत आभार शिवम मिश्रा जी आपका ... धन्यवाद अच्छा बुरा ब्लॉग बुलेटिन मे शामिल करने के लिए.....

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  7. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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    1. बहुत बहुत आभार तुषार राज रस्तोगी जी आपका....

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  8. Bhut kuch yad aa gya sachh mai wo radio tym.. Mummy ka khna bnate hue gunguna uski dhun P ❣
    Hum bhut chote the jb mummy k liye papa laye the aur ek din wo humse gir k tut gya... Aur mummy ka bhut der tk rona.. ❤

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