सोमवार, 15 नवंबर 2010

शाम

शाम कुछ अजीब होती है
स्याह होता वातावरण
पछिओं का कोलाहल
न जाने क्यूँ कुछ अजीब होता है
गहराता अँधियारा
यादों के पन्ने खोलने लगता है
न चाहते हुए भी
लगता है सब झूठ है फरेब है
मगर तभी समय अहसास कराता है
और यह अजनबीपन फिर घेर लेता है
धीरे धीरे सुबह आती है
फिर जिन्दगी चलती है
मगर शाम तो आयेगी ही
और अजनबीपन फिर होगा ...............


-- वो जो कभी नहीं भूले जा सकते उनको समर्पित विशु

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