सोमवार, 15 नवंबर 2010

अहसास

बाहर से जुड़ने मैं हम तुम भीतर बेहद टूटे हैं
ऐसे मैं भी लोग न जाने हमसे ही क्यूँ रूठे हैं
सबको खुश रखने मैं हमने जाने क्या क्या दर्द सहे
कहने को तो कह सकते थे लेकिन हम खामोश रहे
ख़ामोशी क्या समझेंगे वो जो बैटन के भूखे हैं
आंसू तो पवित्र हैं लेकिन होंठ सभी के झूठे हैं
बाहर से जुड़ने मैं ...........................
जिसको चाहा दिल से चाहा शाएद यही गुनाह हुआ
मैं तो हुआ समर्पित लेकिन लोग कहें गुमराह हुआ
हर सचाई शरमाई सी, हम सब कितने झूठे हैं
बाहर से जुड़ने मैं ..............


-----विशु

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