शनिवार, 11 दिसंबर 2010

क्यूँ है

कागज सा यह शहर क्यूँ है
आग से सबको इतना डर क्यूँ है
अंतिम यात्रा भी संस्कार क्यूँ है
भगवान है तो भगवान क्यूँ है
जिसको होना था हर दामन पर
वह दाग आखिर चाँद पर क्यूँ है
लिखना गर नहीं आता है तो
हाथ मैं यह मुकद्दर की कलम क्यूँ है
रहना है तो किसी घर में रह
तेरे लिए मेरा यह दिल क्यूँ है
भुला सकता हूँ सब कुछ जहाँ का
मगर तेरी याद जेहन मैं क्यों है ..........

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