गुरुवार, 11 अगस्त 2011

यादें

बातें ख़त्म हो गयीं जिक्र जिसका हम किया करते थे .......
वो गलियां कहीं खो गयीं जिन पर हम चला करते थे......
न शाम रही न धुआं किसी एक भी चिराग मैं......
वो चले गए जिन्हें हम देखे कभी न थकते थे......
हमको क्या हक है अब किसी को कुछ कहने का ......
बातें वो और थीं ॥ हम जिनपे मिला करते थे .....
रास्ता न रहा कोई मेरी मंजिलें तक़दीर का .......
रास्ता वो सब छुट गया॥ हम जिनपे मिला करते थे .....
अब हमको मारेगी क्या दुनियां कि ये विरानियाँ ...
वो अंदाज और था.. जीने का.. जब रोज मरा करते थे..

1 टिप्पणी: