मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

शाम

शाम जब आती है 
दिवाकर वक़्त के परों  पर बैठकर 
धीरे धीरे चला जाता है 
मुस्कराता हुआ 
तो तुम बहुत याद याद आते हो 
और ऊस  लालिमा के साथ 
डूबने  लगता है ये दिन भी ...
शाम की सुचना देते पंक्षी 
जब लौटने लगते हैं बसेरों को 
दरख्तों के लम्बे होते साये 
पड़ते हैं जब जमीनों  पर 
तो अचानक ही तुम्हारी याद आ जाती है
व्यतीत होता  एक और दिन 
समाप्त हो जाता  है
और एक आशा आंसू बनकर 
मुस्कराने  लगती है
जब शाम आती है  ......

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