सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

कुछ भी नहीं मिलता

कुछ भी नहीं मिलता  ...
काश हम समझ लेते
मंजिलों की चाहत में
रास्ते बदलने से ...
फासले नहीं घटते
दो घडी की मोहब्बत में
चार पलों की चाहत में
लोग, लोग ही रहते हैं..
काफिला नहीं बनते ...
हांथो में दिया लेकर
होंठो पे दुआ लेकर
मंजिलों के जानिब को..
चल भी दिए तो क्या होगा..?
ख्वाहिशो के जंगल में
इतनी भीड़ होती है..
जिंदगी के झंझटो में.  ..
रास्ते नहीं मिलते...
हमसफ़र नहीं मिलते..
शायद कुछ नहीं मिलता..
कुछ नहीं मिलता, कुछ भी नहीं मिलता....

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