आज गहरे अंतस में
न जाने कैसी
अजीब सी
छाया बन रही है
लगातार जारी है
समझने की नाकाम कोशिश ....
मगर छाया नहीं सुलझती
दौड़ रहा हूँ ...
बीते हुये कल के
हर एक के जानिब को
शायद वो हो ...
नहीं वो नहीं है ...
अच्छा वो हो सकता है
मगर कहाँ भागूँ
कितना भागूँ ...
बहुत दूर आ चुका हूँ
वापस जाना मुमकीन नहीं हैं
अंतस में
छाया और गहरी
होती जा रही है
अजीब सा लगता है
जब कोई अपना हो
और अपना न भी हो
छाया तो छाया ही है
मगर है तो किसी
अपने की
है न ....
लगाव सा हो गया है
मगर पहचान नहीं पा रहा
कोई - कोई उलझन अच्छी
लगती है ...
सुलझे बगैर ...
उलझन ... उलझन ही है ....
न जाने कैसी
अजीब सी
छाया बन रही है
लगातार जारी है
समझने की नाकाम कोशिश ....
मगर छाया नहीं सुलझती
दौड़ रहा हूँ ...
बीते हुये कल के
हर एक के जानिब को
शायद वो हो ...
नहीं वो नहीं है ...
अच्छा वो हो सकता है
मगर कहाँ भागूँ
कितना भागूँ ...
बहुत दूर आ चुका हूँ
वापस जाना मुमकीन नहीं हैं
अंतस में
छाया और गहरी
होती जा रही है
अजीब सा लगता है
जब कोई अपना हो
और अपना न भी हो
छाया तो छाया ही है
मगर है तो किसी
अपने की
है न ....
लगाव सा हो गया है
मगर पहचान नहीं पा रहा
कोई - कोई उलझन अच्छी
लगती है ...
सुलझे बगैर ...
उलझन ... उलझन ही है ....
bahut sundar .... zabardast... .
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