बुधवार, 29 अप्रैल 2009

रिश्तो की गांठ

जीवन मैं दर्द
एक नही है
कभी गम
कभी त्रास
कभी कुंठा
कभी ख़ुद को झुठलाने वाला
रोज एक नया सपना है ।

जीवन सिर्फ़ एक चादर है
जिसमे भरा है गर्द गुबार
कुछ अपना
कुछ दूसरो के समान
कुछ कम का
बाकि बेकार ।

सब कुछ समेटकर
चादर मैं
लगा दी जाती है
रिश्तों की गांठ
ढोने के लिए
ता उम्र भर ।

एक छोटा सा कमजोर धागा
वजन पड़ने पर
नहीं संभाल पता है
ख़ुद को
और बन जाता है
चादर मैं छेद ।

चादर से हर रोज गिरता है
एक एक सामान
अंत मैं
रह जाती है
सिर्फ़ एक गांठ
कपड़ा
कितना कमजोर क्यों न हो
मुश्किल है तो
सिर्फ़
एक गांठ को खोल पाना .........

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें