बुधवार, 17 नवंबर 2010

स्मरण

जीवन मैं कई चीजे जब घटती हैं तो वो शाश्वत होती हैं और हम जन बुझकर उसे झुठलाने का प्रयास करते रहते हैं ! हम मृत्यु से इतना घबराते हैं कि पूछो मत , किसी की मृत्यु सुनकर या देखकर एकदम से अपना रक्त चाप निम्न कर लेते हैं यह आज से नहीं बरसो से होता चला आ रहा है! तभी तो इसे झुठलाने के लिए हम बार बार कहते हैं दोहराते हैं कि आत्मा अजर अमर है ये बहुत जोर देकर कहते हैं क्यूँ ? क्यूंकि हमें मृत्यु को झुठलाना है ! हम तसल्ली देते रहते हैं घबराओ मत ये तो अजर अमर है लेकिन अन्दर से हम जानते हैं कि यह बात हम किस चीज से दर कर कह रहे हैं !
दोहराने से कभी बात सच नहीं हो सकती हमें यह समझाना चाहिए ! आंखे बंद कर लेने से केवल अँधेरा होता है रात नहीं हो सकती ! मृत्यु नहीं है ये कह देने से मृत्यु नहीं होगी ऐसा कदापि नहीं है, मेरे समझ से मृत्यु को समझना होगा उससे साक्षात्कार करना होगा ! लेकिन अफ़सोस यह है कि हम सभी पीठ दिखाकर भागे जा रहे हैं मौत से !
आज सितेम्बर माह का अंतिम दिन है रात्रि के १.२० बज रहे हैं सभी अपनी अपनी यात्रा पर हैं(सो रहे हैं) कल यानि कि ०२ अक्टूबर को मम्मी का श्राद्ध है और ७ अक्टूबर को पापा जी का हाँ पिछले दो वर्षों से खासकर पिछले वर्ष इन्ही दिनों मैं मृत्यु को बहुत करीब से महसूस किया खैर आज भी वो लोग मेरे आस पास जरुर होंगे ऐसा मेरा विश्वास है और उनकी फोटो सामने वाली दीवाल पर लगी है मुझे देख रहे हैं मगर वो हाय राम ! हाय राम ! वो कहरने की आवाजे नहीं कर सकती न ही वो अब मुझसे पानी मांग सकती हैं और तो और वो वाकर कि ठक ठक की आवाज भी नहीं आ सकती हाँ याद आया वो वाकर मैंने अंतिम बार अपने पुराने वाले मकान के बगल मैं पड़ा देखा था मन तो था उसे हमेशा अपने साथ रखने का क्यूंकि कल तक जो हमारे सहारे का सहारा था उस सहारे को देखकर छू कर एक तसल्ली होती थी लेकिन कुछ चीजें हम चाह कर भी नहीं कर सकते यही जिन्दगी की सबसे बड़ी बात है और सच है ....................
मुझे अच्छी तरह याद है हमारे वाराणसी वाले घर के सामने से पंचकोशी रोड हुआ करती थी उसपर दो तीन दिनों मैं एक दो लाश अक्सर दिखाई देती थी हमारी मम्मी हमें तुरंत अन्दर खिंच लिया करती थी और कहती थी कि बहार मत आना भय भीत हो जाओगे, रात के अँधेरे मैं राम नाम सत्य है के आवाज ऐसे गूंजती थी कि पता नहीं क्या था वह, एक सबसे मजेदार बात यह कि मिटटी (लाश) के साथ चलने वाले जो बोलते हैं वो भी भगवन का ही नाम होता है मगर उस समय जो समां बनता है वो बहुत डरावना होता है!
मुझे याद है जब कुछ दिन पूर्व मम्मी पापा का देहावसान हुआ था इससे पूर्व भी मैंने बहुत नजदीक से मृत्यु शैया देखी है और उसपे बैठा व्यक्ति क्या सोचता होगा मैं समझ सकता हूँ ! शुक्रवार का दिन था मैं अपने ऑफिस से आया तो देखा कि मम्मी बिस्तर मैं है और यह एक हम सब के लिए अनोखी बात थी क्यूंकि मम्मी को हमने कभी बिना टाइम के बिस्तर मैं नहीं देखा था ! जब हम सोने जाते थे तब मम्मी किचेन मैं होती और जब हम सुबह उठते तो मम्मी किचेन मैं होती घुघरी (चने कि सब्जी) बनाते हुए उनके घुघरी और पराठे कि खुसबू से सुबह सुबह भूख दोगिनी हो जाया करती थी! उनका सुबह सुबह सबसे प्रिय भजन था जो हम सब को उठाने के लिए गया करती थी उठ जाग मुसाफिर भोर भाई अब रैन कहाँ जो सोवत है उनके जाने के बाद न वो घुघरी रही और न वो पराठ रहा जाने कितने बार घुघरी बनवाई मगर वो स्वाद वो खुशबु नहीं आ पाया अब तो घुघरी खाना छोड़ दिया क्यूंकि मन नहीं करता स्वाद नहीं मिलता......................
सुबह ऑफिस भी जाना है आगे का स्मरण बाद मैं लिखता हूँ
तेरा दरबार अमर रहे माँ
हम दो चार दिन रहे न रहे !!

1 टिप्पणी:

  1. INME SE BAHUT SE SMARANON ME MAIN BHI SHAMIL THA. PADHKAR KUCH DER KE LIYE AISA LAGA JAISE SAB KUCH EK PAL KE LIYE SAAMNE POORI TASVIR DIKHAI DE GAYI HO.
    HO NA HO PAR UNCLE AUNTY MUJHE BHI KABHI NA KABHI YAAD JAROOR KARTE HOONGE, KYU SIR.
    UN DONO AATMAON KO MERA SAT SAT PRANAAM.

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