गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

नया साल

जाते हुए साल के गम में
आते हुए साल की ख़ुशी में
जिंदगी एक किताब सी खुली है
कई सफे तो खुले भी नहीं
किसी सफे को यादों ने मोडा है
किसी पर निशाँ थे आंसुओं के
किसी सफे पर उदासियाँ तैरती थीं
मगर कहने को तो ये किताब थी
कौन जाने कि गिंदगी थी ...............

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