मैं क्या लिखूँ
कहाँ से पकड़ू
कहाँ से जोड़ू
न भाव है
न आधार है
अंतहीन है सिलसिला
गुजरता जाता है
सब कुछ इस जहां मे
निराकार है, निराधार है
लालसाए हैं
न ठिकाना है, न ठहरना है
फैले हुये शब्दों के जंजाल
महत्वाकांक्षाएं, मौलिकता
सब दिखावा है
क्या लिखूँ
यह व्यथा की कथा है
शब्दों का सूनापन है
क्या लिखूँ
न भाव हैं ... न ही आधार है ....
बहुत भावमयी रचना...
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