रविवार, 7 जुलाई 2013

मैं क्या लिखूँ

मैं क्या लिखूँ
कहाँ से पकड़ू
कहाँ से जोड़ू
न भाव है 
न आधार है 
अंतहीन है  सिलसिला 
गुजरता जाता है 
सब कुछ इस जहां मे
निराकार  है, निराधार है 
लालसाए हैं 
न ठिकाना है, न ठहरना है 
फैले हुये शब्दों के जंजाल 
महत्वाकांक्षाएं, मौलिकता 
सब दिखावा है 
क्या लिखूँ 
यह व्यथा की कथा है 
शब्दों का सूनापन है 
क्या लिखूँ 
न भाव हैं ... न ही आधार है .... 

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