...................... पता नहीं कोई आपके स्मृति पटल में न जाने क्यूँ और एक अजीब तरह से क्यूँ रहने लगते हैं। कुछ बहुत ही अटपटे कारणों से, कुछ तो अनायास ही घर बना लेते हैं जिसका स्पष्टीकरण शायद आप नहीं दे सकते ...... जैसे मेरठ में जब मैं रहता था तो वो भिखारी जिसकी कर्कश आवाज दे ...... दे ...... माई........ दे …… दे ...बाबू साहब कुछ तो दे ............ दे .... वो भिखारी माई तो कहता था .....मगर दे ..... दे....बापू नहीं कहता था .... क्यूँ नहीं कहता था इसका जवाब आज तक नहीं खोज पाया.......... खैर उसका सभी घरों को छोड़कर मेरे घर तक आना और उसके आने के बाद मैं उसको देखते ही न जाने क्यूँ जो भी होता था जेब में दे दिया करता था ..... और कई बार तो रास्ते में भी मिल जाया करता था और में आदतन उसे कुछ न कुछ जरूर देता था ...... पता नहीं क्यूँ ? शायद उससे कोई रिश्ता रहा हो पुराना........... अचानक कई महीनों तक वो नहीं दिखा और जैसे अचानक ही गायब हुआ था वो, अचानक ही आ गया और अपने कॉपीराइट आवाज में मांगता हुआ मैंने पूछा कि कहाँ थे इतने दिन तक वो बोला अल्सर हो गया था साहब पेट में और फिर वो चला गया .......... जो आजतक नहीं मिला ..... आज भी पता नहीं क्यूँ वो बहुत याद आता है।
आपके जीवन में भी कुछ लोग ऐसे शामिल होते हैं जो आपको दुबारा नहीं मिलते मगर यादें उनकी जेहन में हमेशा रहती हैं ...पता नहीं क्यूँ...........
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