बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

टूटकर उसे बहुत याद आ रहा है ....

ये सच है, 
पुराना जाता नहीं तो 
नया पत्ता आता नही 
पर पुराना जब 
टूट के जाता है 
तो उसे बहुत याद आता है 
कल तक जिस टहनी पर 
वह इतना इतराता था 
इतना इठलाता था 
आज बेबस पड़ा है 
सड़कों पर आ खड़ा है 
जरा सी हवा आई 
और उड़ा ले गई ...
कल तक जिस हवा का 
आँचल सहलाता था 
आज वही हवा 
उसे दर-बदर कर रही है 
तकदीर बदलते 
देर नहीं लगती 
कल तक हारा था 
आज धूप मे पड़ा 
खड़खड़ा रहा है 
टूटकर उसे  बहुत याद आ रहा है .... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें