गुरुवार, 31 जुलाई 2014

डायरी और उसके पन्ने ....



धूल में दबी हुयी ये डायरी
जिसकी एक एक परत की हैं ये यादें
हर एक सफा तुम्हारी याद है
.... न जाने कहाँ कहाँ रखा उसे
..... आलमारी मे ठूसा
..... बक्से में दबाया
.... ऊपर टाँड़ पर रखा
अटैची मे रखा ....
उसके पन्नों के रंग उतर गए
मगर लिखावट वही रही
आज भी देखकर उन सफ़ों को
और आपके उन हिसाबों को देखकर
उन हिसाबों मे हमारा भी अंश हैं
जिन्हे आज देखकर महसूस करता हूँ
उन सफ़ों पे लिखा आपका हिसाब
दूध वाले को  - 65 रुपये
सब्जीवाले को  - 120 रुपए
टाफी में  - 2 रुपए
बच्चों की फीस  - 20 रुपये
और भी बहुत कुछ
आज से इसका गहरा संबंध  है
इन सफ़ों में आपकी ममता की जो खुशबू है
डायरी की एक एक परत मे जो छिपा है
वह हमारे जाने के बाद भी बोलेगा
यादें आदमी के जाने के बाद भी बोलती हैं
इन पन्नों को सहेज दो
बंद कर दो, क्यूंकी
माँ की याद तो आ गई
मगर माँ .... ...

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