सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

मुझे पागल कर दो

सुनो ,
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो
शरीर से दिमाग का
संपर्क खत्म कर दो
मेरे एहसास
मेरी प्यास
मेरी तृष्णा
मेरा प्यार
मेरी लालसा
से मेरा नाता खत्म कर दो
न मर्म रहे
न भावना
न दर्द रहे
न रोग . . . .
सुनो . . . .
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो
जीवन तो तब भी रहेगा
दौड़ेगा रगों मे खून
देखुंगा, सुनुंगा
खा भी लूँगा
दोगे कपड़े तो पहन
भी लूँगा
न होगा तो केवल
एहसास . . . .
अपने और दूसरे
की पहचान
अच्छा क्या
खराब क्या
ईर्ष्य क्या
दुलार क्या
अपना कौन
कौन बैगाना
भूख है क्या
प्यास क्या . . . .
और ये सब जब थे . . .
तभी क्या था . . .
सुनो . . .
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो . . . .

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