जीवन कठिनाईयों मे
गुजर रहा है ऐ मौला
रात गुजर रही है
बगैर नींद के ऐ मौला
बेपरवाह एक जुगनू
खलल डाल रहा ऐ मौला
सफर मे चला जा रहा हूँ
मंजिल की तलाश मे ऐ मौला
कहता बहुत हूँ, चीखता बहुत हूँ
सुनता कोई नहीं ऐ मौला
काली रात कटेगी, सुबह तो होगी
इंतजार मे हूँ ऐ मौला
जख्म इतना दिया कि
इंतहा कि हद कर दी
जख्म के दर्द का अहसास न रहा ऐ मौला
खारा हो गया हूँ जैसे समंदर का पानी
अब मिठास की आस है ऐ मौला
हमनवा, हमनवा न रहा
हमसफर, हमसफर नहीं
परछाई भी कतरा रही अब तो मौला ....
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