उम्मीद तो
मुझे अपने आप से भी थी
उम्मीद तो
मुझे अपनों से भी थी ...
सोचता तो
अपने के लिए भी था
सोचता तो
दूसरों के लिए भी था
सुधार की गुंजाईश
अपने आप से भी थी
सुधार की गुंजाईश
दूसरों से भी थी
इन्हीं ...
उहापाहो में
सफर काटता रहा ...
जब उम्मीद
अपनी पूरी नहीं हुयी
सोच अपनी न रही
सुधार खुद को न पाया
तो शिकायत
अब किससे
और क्यूँ
जीवन का फलसफा
यूं ही गुजरता रहा
और हम कारवां देखते रहे ....
अच्छी रचना !
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