हम छोटे छोटे थे
जब माँ
कोयले की राख़ से
गोले बनाती थी
हम भी बैठे बैठे
गोले बनाते थे
ये वाला मेरा
ये वाला तेरा
मेरा गोला ज्यादा मोटा
तेरा वाला पतला गोला
धूप मे गोले
फैला दिये जाते
सूरज अपनी तपन से
हवा अपने वेग से
गोले को सूखा देते
शाम को अम्मा
उन्हे उठाती
तब भी हम लड़ते
ये तेरा वाला
ये मेरा वाला
अंगीठी मे एक एक करके
गोले जलाये जाते
ये तेरा वाला गया
ये मेरा वाला गया
आज जब माँ नहीं है
गोला नहीं है
अंगीठी भी नहीं है
तेरा वाला नहीं है
मेरा वाला नहीं है
बस दहक रहा हूँ आग मे
खाक होने की आस मे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें