यूँ ही सिकोड़ कर
आलमारी के एक कोने में कहीं ...
पुराने अखबार सी हो गयी है जिंदगी
तिरस्कारित कल की खबर
जिसको कोई पढता ही नहीं
चिमुड़ गया है हर पेज
चाहो तो भी खोल न पाओ ....
उन्ही सीले हुए पेजों पर
कही कही चमकते इश्तहार भी हैं
जिसका वजूद धरातल पर
कहीं नहीं हैं ....
सोच रहा हूँ क्या फायदा है
बेच दूँ .. इस रद्दी को
किसी कबाड़ वाले को
जिसका कोई भाव न हो
क्या फायदा रखने से भी
जला डालूं , कुछ तपिश ही
महसूस कर लूँ .....
मगर आज भी हर पेज
पर दीखता है वही उम्मीद
जो हर सुबह की ताज़ी खबर
नए अखबार में होती है .....
आलमारी के एक कोने में कहीं ...
पुराने अखबार सी हो गयी है जिंदगी
तिरस्कारित कल की खबर
जिसको कोई पढता ही नहीं
चिमुड़ गया है हर पेज
चाहो तो भी खोल न पाओ ....
उन्ही सीले हुए पेजों पर
कही कही चमकते इश्तहार भी हैं
जिसका वजूद धरातल पर
कहीं नहीं हैं ....
सोच रहा हूँ क्या फायदा है
बेच दूँ .. इस रद्दी को
किसी कबाड़ वाले को
जिसका कोई भाव न हो
क्या फायदा रखने से भी
जला डालूं , कुछ तपिश ही
महसूस कर लूँ .....
मगर आज भी हर पेज
पर दीखता है वही उम्मीद
जो हर सुबह की ताज़ी खबर
नए अखबार में होती है .....
उम्मीद हो है जो बचाए रखती है हर चीज़ को ... यहाँ तक की ज़िन्दगी को भी ...
जवाब देंहटाएंbahut khoob Amod bhai
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