शनिवार, 25 अप्रैल 2009

कोई रिश्ता नही है .....

फ़िर वही शाम घिर आयी है
आज फ़िर उसकी याद चली आयी है
दफ़न कर दो यादों के इन लम्हों को
दिल रूककर फ़िर चलने को है
वक्त रुकता नही दिखर यह
उसकी आदत भी हवाओं सी है
हमारा कोई रिश्ता नही रहा फ़िर भी
वह है हमर जिसका उसे पता भी नही है ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. रचना बहुत अच्ची लगी।धन्यवाद। हर सप्ताह आप को ऐसी ही रचनाएं मेरे सभी ब्लाग्स पर मिलेगी,सहयोग बनाए रखिए......

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  2. रचना बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद..
    आप मेरे ब्लाग्स पर आयें,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।

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