मंगलवार, 16 नवंबर 2010

त्रासदी

बांटना जारी है , हमको आपसे
अमीरों को गरीबों से
पानी को लकीरों से
रात को अंधियारे से
अगरबत्ती सी सुलगती है
यातना की रौशनी
जिसकी रौशनी मैं
दिख रही है
त्रासदी अपने अरमानों की
अपने समय को
देखता हूँ सिगरेट के धुंए मैं
इन धुओं के साथ
काले कण
जिन्दगी के रुपहले समय है
बांटता हूँ इन समय को
धुएं को खींचकर
एक काश भरकर
फिर उडेलता हूँ
गिनता हूँ , बांटता हूँ बार , बार ...........

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