ये जो झुर्रियों के बीच... चमकती थी ये आँखें.. मुझे अब भी इस मुकाम पे .. जवान बनाती थी ये आँखे ... मेरा मन, मेरा दिल, मेरा दिमाग ... सब पढ़ लेती थी ये आँखें... अब, जब सब है इस मुकाम पे .. तब, गर कुछ नहीं है तो.. बस माँ... तू और तेरी वो आँखे..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...! आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी! सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
shaandaar... khubsurat abhivayakti..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी आपका बहुत बहुत आभार.. चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंश्रीमान मुकेश कुमार सिन्हा जी आपका बहुत बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंश्रीमान कालीपद प्रसाद जी आपका बहुत बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंBahut achhi prastuti... marmik rachna.. dedicated to my great nani.....
जवाब देंहटाएंdhanyawad nidhi..
जवाब देंहटाएं